Friday, October 21, 2011

रथ यात्रा के बहाने ..............!


भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित जन चेतना यात्रा की शुरुआत क्रांति पुरूष जयप्रकाश नारायण की जम्न स्थली सिताबदियारा से की गयी. 11 अक्टूबर 2011 को शुरू हुई इस जन चेतना यात्रा को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. इस मौके पर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली, बिहार के उप- मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी सहित अनंत कुमार और रविशंकर जैसे भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेता भी उपस्थित थे. इस रथ यात्रा में आडवाणी को उनके परिवार का भी साथ मिल रहा है. रथ यात्रा के दौरान आडवाणी की पत्नी कमला आडवाणी और बिटिया प्रतिभा आडवाणी भी उनके साथ होंगी. भापजा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सुशासन और स्वच्छ राजनीति के उद्देश्य से भ्रष्टाचार के खिलाफ इस रथ यात्रा की शुरुआत की गई है. 11 अक्टूबर से 20 नवंबर तक चलने वाली इस रथ यात्रा के द्वारा एक बार फिर आडवाणी एनडीए गठबंधन के पक्ष में जनाधार तैयार करने का प्रयास करेंगे. इस दौरान अपनी विभिन्न जनसभाओं द्वारा आडवाणी संप्रग गठबंधन में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर भी करेंगे. हालांकि इस रथ यात्रा का एनडीए गठबंधन के अलावा सभी राजनीतिक दलों ने राजनीति स्टंट तथा सत्ता में दुबारा आने की कोशिश मात्र करार दिया है. ज्ञात हो कि इससे पूर्व भी आडवाणी ने पांच और रथ यात्राएं की हैं, जिनका एनडीए गठबंधन को कभी कभार फायदा भी हुआ है. लेकिन ज्यादातर मौकों पर आडवाणी अपनी रथ यात्रा के द्वारा जनसमर्थन प्राप्त कर पाने में असफल ही रहे हैं. अब यह देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि विभिन्न समस्याओं से जूझ रही संप्रग गठबंधन की सरकार को आडवाणी और कितना उलझा पाते हैं. और संप्रग गठबंधन के विरूद्ध जनसमर्थन प्राप्त करने में सफल हो भी पाते हैं या नहीं.

उम्मीद लगा बैठे हैं सिताबदियारा के लोग

दुबारा सत्ता में आने के बाद भी अब तक विकास की हवा सिताबदियारा से होकर नहीं बही थी. यह तो भला हो आडवाणी का जिनकी घोषणा के बाद सरकार की नींद टूटी और सिताबदियारा के काया पलट देने की कवायद आनन-फानन में शुरू की गई. रथ यात्रा की तिथी जैसे-जैसे नजदीक आने लगी उपर-उपर ही सही स्थिती बदलने जरूर लगी.

यह जानना भी दिलचस्प होगा कि सिताबदियारा कि आबादी 20 हजार है जिसमें कुल नौ हजार मतदाता हैं. बताते चलें कि यहां कुल 11 प्राथमिक विद्यालय, 3 मघ्य विद्यालय और एक हाई स्कूल है. आभावों के बावजूद भी यहां के लोग शिक्षा को लेकर जागरूक हैं, तभी तो यहां के बच्चे गांव की शिक्षा खत्म होते ही पास के यूपी महाविद्यालय में दाखिला लेने से नहीं हिचकते हैं.

जेपी आंदोलन की उपज रहे वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद या कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की बागडोर संभाल चुके राम बिलास पासवान हों किसी ने अब तक उस ओर रूख नहीं किया. जेपी के नाम पर अपना परचम लहराने वाले श्री प्रसाद को तो अब उनकी जन्मस्थली तक जाने की फूर्सत ही नहीं मिली है. श्री जेपी ने अपनी पत्नी प्रभावती के नाम पर 1960 में एक पुस्तकालय का निर्माण करवाया था. आज उस पुस्तकालय में दो सौ पुस्तकें भी नहीं हैं. बताते चलें कि नीतीश कुमार का 10 फरवरी 2010 को यहां आना हुआ था, तब उन्होंने यह घोषणा की थी कि इस पुस्तकालय को मॉडल पुस्तकालय के रूप में विकसित किया जायेगा. लेकिन इस दिशा में अब तक एक भी कदम नहीं उठाये गए हैं. बचपन में जेपी जिस स्कूल में पढे थे वहां के शिक्षक अरूण कुमार बड़े ही गर्व के साथ कहते हैं कि यहीं जेपी ने स्कूली शिक्षा ग्रहण की थी. लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस है कि इस स्कूल को अब तक अपना एक भवन नहीं है. यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि अब तक उस गांव को जेपी की एक आदमकद प्रतिमा नसीब नहीं हुई है.

जेपी के गांव और उस इलाके में घूमते हुए आपको एक विरोधाभास भी देखने को मिलेगा. टहलते हुये अगर आप यूपी वाले उस हिस्से में चले जाते हैं जिसे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर ने बड़े प्यार से बसाया था और नाम दिया जयप्रकाश नगर. यह नगर इतनी खूबसूरती से बसाया गया है कि यहां आज भी जेपी और चंद्रशेखर को आप महसूस कर सकते है. जेपी की पत्नी के नाम पर एक खूबसूरत पुस्तकालय बनवाया गया है. जेपी अपनी पत्नी के साथ जिस घर में रहते थे वहां आज भी उनके कपडे, बेड, टूटे हुये चप्पल और उनसे जुड़ी हुई यादें सहेज कर रखी हुई हैं. तस्वीरों की एक लम्बी श्रृंखला भी लगाई गई है जिसे देखकर 74 के संपूर्ण क्रांति को आप समझ सकते हैं. लोगों में इस बात को लेकर भी मतभेद है कि जेपी का जन्म हुआ कहां था? जयप्रकाश नगर के रहने वालों का मानना है कि जेपी का जन्म ही यूपी वाले हिस्से में हुआ था, वहीं सिताबदियारा के बिहार वाले हिस्से के लोगों का मानना है कि जेपी का जन्म बिहार में हुआ था लेकिन उनके बचपन में ही गांव में प्लेग फैली थी जिसकी वजह से उनके घरवाले पांच किलोमीटर दूर जाकर यूपी के बलिया जिले में बस गये.

अब तक मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित रहे सिताबदियारा के लोगों को आडवाणी के आने से एक दिन पहले बिजली नसीब हुई है. और रथ को रवाना करने तक मुख्यमंत्री ने एक के बाद एक कई घोषणऐं भी की. कम से कम आडवाणी इसके लिये तो धन्यवाद के पात्र हैं ही कि उनकी धोषणा के बाद ही सही सरकार ने सिताबदियारा का रूख तो किया। क्रांती की जननी रही इस धरती के लोगों की उम्मीदें कहां तक पूरी होती है यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा.

लगा हुआ है यात्रा का चस्का

11 अक्टूबर को सिताबदियारा से शुरू हुई जन चेतना यात्रा आडवाणी की पहली रथ यात्रा नहीं है. इससे पूर्व भी आडवाणी विभिन्न मौकों पर 5 बार रथ यात्रा कर चुके हैं. 1990 के बाद आड़वाणी की यह छठी रथ यात्रा है.

कुछ बातें इस यात्रा को खास बना देती है. अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के उद्देश्य से सोमनाथ से 25 सितंबर 1990 को शुरु हुई यात्रा को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने रोक दी थी. आज उसी बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस रथ यात्रा को हरी झंडी दिखाई. खुद को प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार के रुप में पेश करने को लेकर भी यह यात्रा है. परोक्ष रुप से आडवाणी भी स्वीकार ही चुके हैं. वरना भ्रष्टाचार को लेकर इनकी पार्टी की छवी भी कोई साफ-सुथरी नहीं है. वेल्लारी बंधु, योदुरप्पा और निशंक जैसे कई चेहरे इनके भी पास हैं. वैसे चर्चा तो इस बात की भी है इस यात्रा के जरिये आडवाणी अपनी बेटी प्रतिभा को राष्ट्रीय राजनीति में प्रोजेक्ट करना चाहते हैं.

बहरहाल इस यात्रा से सिताबदियारा के लोग उम्मीद जरुर लगा बैठे हैं. वहां के लोगों को लगने लगा है कि विकास की बयार अब यहां भी बहेगी. इस यात्रा से कम से कम सिताबदियरा के लोगों का ही भला हो जाये वैसे देशहित के लिये कभी इनकी रथ यात्रा तो निकली नहीं है.

नोट:- अमित और विकास बाबू को विशेष धन्यवाद.

देखा-सुनी