Tuesday, November 24, 2009

असहमति का साहस


"हत्यारा कौन" शीर्षक नाम से लिखा गया मेरा आलेख जो मेरे ब्लॉग के अलावा भड़ास पर भी छापा था |
वहीं पढने के बाद मोहित जी का ये पत्र मुझे मिला जो इस प्रकार है |
पत्र सिर्फ औऱ सिर्फ शशि सागर जी के लिए है... जिन्होंने बाकायदा नक्सलियों के हक़ में तर्क प्रस्तुत किए हैं... इन्हें कुछ पत्रकार तर्क कह सकते हैं और कुछ कुतर्क... मैं न बड़ा हूं और न बड़ा पत्रकार... लेकिन इनकी राय से इत्तेफाक बिल्कुल नहीं रखता हूं... और उम्मीद है शशि जी इसका सम्मान भी करेंगे... शशि जी को छत्रधर महतो के मारे जाने और उसके तरीके पर आपत्ति है... शशि जी को लालगढ़ में पुलिस की घेराबंदी पर आपत्ति है...बिहार में पुलिस के तौर तरीकों पर आपत्ति है... मुझे भी है... लेकिन इसके जवाब में नक्सलियों जैसे घिनौने काम से भी उतनी ही आपत्ति है... वे चाहे जिस खेत में लाल झंडा गाड़ दें... गांधी के बजाए माओ त्से तुंग और अपना भगवान मान लें... 5-6 साल के बच्चों को बांध कर गोली से उड़ा दें... लेकिन फिर भी उन्हें सहानुभूति करने वाले लोग मिल ही जाएंगे... ये सहानुभूति उनके लिए च्यवनप्राश का काम करती है जो उन्हें सभ्य समाज और कानून जैसी बीमारियों से बचा कर रखती है... शशि जी... मैं बिहार-झारखंड-उड़ीसा-छत्तीसगढ़ इत्यादि का नहीं हूं... इसे दुर्भाग्य समझिए या सौभाग्य नक्सलियों से पाला नहीं पड़ा... हां बौद्धिक नक्सलियों और आतंकवादियों से इस मीडिया में औसतन हर तीसरे दिन दो चार होता रहा हूं... उनमें से कुछ नक्सलियों को सही ठहराते हैं... कुछ माओवादियों और रणबीर सेना को... कुछ राज ठाकरे और कुछ ओसामा बिन लादेन और तालिबान को...
आपने सही प्रश्न उठाया... आखिर नक्सली बंदूक उठाते ही क्यों हैं... आखिर ऐसी क्या ज़रूरत आन पड़ती है उन्हें जो वो हिंसा के रास्ते पर चलते हैं... लेकिन इसी से जुड़ा सवाल है कि तालिबान... बोड़ो... और अब तो सेना के कुछ लोग भी ऐसा क्यों करते हैं... मैं गांधीवादी नहीं हूं... लेकिन लादेनवादी भी नहीं हूं... मेरी भावनाएं कईं हैं... लेकिन उन्हें अभी उजागर नहीं करूंगा... अगर आपका जवाब आया तो करूंगा... फिलहाल आपकी कविता के जवाब में मेरी कविता

हक़ कत्ल का जबसे जताने लगे हैं
कुछ गुंडे नक्सली कहाने लगे हैं...
काश कि सबकी नियत साफ होती
रोटी के बदले कुछ गोली चलाने लगे हैं...
हवन की आहुतियों में हाथ जला तो
आग को ही दुश्मन बताने लगे हैं
कहीं विरोध की आंख खुल न जाए
सरे-आम बच्चों ढहाने लगे हैं...
शोषितों की कमज़ोरियां का फायदा उठाने
तालिबान खुद को भारतीय बताने लगे हैं

एक के बदले जब तीन नहीं दिए
गला काट कर नाम सज़ा-ए-मौत सजाने लगे हैं
कि जिनके पास नहीं रोटी व ज़मीन
आखिर कहां से वो बारूद लाने लगे हैं
सरहद पार से कुछ उनके दोस्त
लाल रंग भिजवाने लगे हैं...
बुरा मत मानिएगा... लेकिन वो आपकी भावनाएं थीं... ये मेरी हैं... दोनों को अपनी बात कहने और अहसास करने का हक़ है...अब भी बुरा लग रहा हो तो mohitmishra1@gmail.com पर गुस्सा उतार लें...
मोहित
(इस पत्र का जवाब लिखा जा चुका है, अगले पोस्ट में जवाब भी प्रकाशित कर दी जायेगी)

9 comments:

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  2. शशि जी,
    आपने लेख में जो कहा है वो शायद मोहित साहब समझ हीं नहीं पाए हैं| आपने कहीं भी नक्सलवाद को उचित न कहा है, बल्कि इसके पनपने की वजह बताया है| एक आम अवधारणा सी बन गई है कि अपने हक़ के लिए लड़ने वाला नक्सली है| जबकि नक्सलवाद की शुरुआत जब हुई थी अपने अधिकार को पाने केलिए, लेकिन अब वो नक्सलवाद नहीं रहा| नक्सलवाद के नाम पर अपराधी अपने अपराध को अंजाम देते हैं, और इसी वजह से कोई भी आम इंसान जब अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाता है तो उसे नक्सली कह कर कुचल दिया जाता है| इन महोदय से आग्रह करें कि वो दुबारा से आपके लेख को पढ़े| आज नक्सलवाद और माओवाद के नाम पर जो अपराध हो रहे हैं वो कोई क्रान्ति नहीं है बल्कि अपराधियों की साजिश है| कोई भी गरीब किसान किसी वाद से जुड़ना नहीं सिर्फ दो वक़्त कि रोटी और सुरक्षित जीवन चाहता है| आपकी सोच और लेखनी यूँ हीं सशक्त रहे, शुभकामनायें!

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  3. shashi ji...
    mohit ji ne apna virodh jatay hai or behad narm taruke se...
    mai chahunga ki ap uanko anke prshan ka jabaav den

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  4. Shashi Ji,
    aapke lekh par mohit ji ne apni fauri pratikriya di hai...main aapke sath sath unki bhavanaon ka bhi samman karta hun..aapne nakslwad ki paidaish ke karan par sawal khada kiya hai aur mohit ji ne naksalwad ke taur tareekon par..dekha jaye to dono ne ek hi baat uthai hai..
    main is vishay ki jad tak jana chahta hun..main is baat se poori tarah sahmat hun ki virodh pradarshan ka ye tareeka galat hai..kintu virodh ki avashykata kyun padi ye bhi dekhna zaroori hai..vidambana ye hai ki hamare desh men ye samasyaen rajniti ki rotiyan sekne ka zariya ban jati hain..yadi seedhe taur par dhyan diya jaaye to aadivasiyon ki shiksha aur samajik jeevan ko addhar dene ki zaroorat hai..aur matri ye hi is samasya ka akhiri hal hai...is mudde par sarthak bahas ki aur avashykta hai..ise zari rakha jaye to achha hoga..

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  5. शशि भाई.....
    मैं किसी व्यक्ति विशेष को लेकर कभी बात नहीं करता..
    अपनी बात को मैं स्वयं में ढाल कर देखता हूँ...
    बहुत छोटी बात थी...एक "शर्मा जी" का लड़का मेरा दोस्त था..
    १० साल की उम्र रही होगी..मैं उसके घर में गया था..
    उसकी माँ ने पानी देने से पहले मेरी "जात" पूछी थी.....
    पानी नहीं दिया..मैंने घर आके अपनी माँ को बताया..
    माँ ने समझाया जब तू बड़ा हो जाएगा खुद समझ जाएगा...
    आज मैं समझ गया हूँ.....
    तो आप समझ ले मैं क्या कहना चाहता हूँ....
    क्यूंकि जब जुल्म हद से पार हो जाता है तो ...
    मेरे जैसा कोई भी होगा विद्रोह जरुर करेगा....
    हाँ हो सकता है हमारा रास्ता अलग हो...
    कानूनन सही ना हो..पर सबकी मज़बूरी होती है....
    क्यूंकि "मरकर" के कोई जंग नहीं जीती जाती....
    हक ना मिले तो लड़ना पड़ता है.....
    यहाँ मैं किसी को सही या गलत नहीं ठहरा रहा हूँ...
    सिर्फ अपनी भावनाएं व्यक्त कर रह हूँ,...
    इसलिए अनुरोध है की मेरी बातो को अन्यथा ना लिया जाए.....

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  6. dada,aek baat bata du yah to mohit ji ki bhavnaye hai jo bah gayi sarkar ki taraf ,lekin isse sarkar ki ijjat nahi badhi hai !saval to abhee bhee barkarar hai ki jab unke dost matlab samajh rahe na aap unake dost lal rang bhijva rahe hai sarhad paar se to sarkari aankh kya kar rahi hai or aap kahte hai ki haq jalane lage hai tab uska shor sarkari kano tak kyo nahi pahucha !to ab sarkar ki naak agar kat rahi to kya fark padta hai ....matlab yaha agar koi saval hai to vo hai sarkari aankh,kaan ,naak ka....jago janmat !

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  7. चलिए हम सबमें एक बात तो कॉमन है... हम सब किसी न किसी बात से असहमत हैं...

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  8. shashi bhai,aapke aur mohit jee, dono ke zazbat apne-apnne jagah sahi h.Muzhe to katai nahi laga ki aap NAKSALBAD ko sah de rhe hain, Jhan tak mujhe lgta h, aur bite 15 sal se maine aapko, aapki bhawnao ko karib se smjha,aap jaise budhijibi sakshiyat aisa nahi soch sakti. Ha aap aur MOHIT JEE jaise logon ka apna apna mat h.... agar wo aapko naksal bad ka supporter samajhe h to nischay hi unki misunderstanding h...

    Ek bat aur khna chahunga ki agar kai naksalbad ke prati kabhi sahanbHuti dikhata h to mai hamesha MOHIT JEE ke sabdon ko buland karunga.
    aap MOHIT JEE KI sanka dur kare
    Dnyabad...............

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  9. shashi bhai,aapke aur mohit jee, dono ke zazbat apne-apnne jagah sahi h.Muzhe to katai nahi laga ki aap NAKSALBAD ko sah de rhe hain, Jhan tak mujhe lgta h, aur bite 15 sal se maine aapko, aapki bhawnao ko karib se smjha,aap jaise budhijibi sakshiyat aisa nahi soch sakti. Ha aap aur MOHIT JEE jaise logon ka apna apna mat h.... agar wo aapko naksal bad ka supporter samajhe h to nischay hi unki misunderstanding h...

    Ek bat aur khna chahunga ki agar kai naksalbad ke prati kabhi sahanbHuti dikhata h to mai hamesha MOHIT JEE ke sabdon ko buland karunga.
    aap MOHIT JEE KI sanka dur kare
    Dnyabad...............

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