Thursday, November 26, 2009

सहमति का विवेक


मोहित बाबु
नमस्कार
व्यक्तिगत कारणों से आपके पत्र का जवाब लिखने में इतना वक़्त लगा | क्षमा चाहुंगा |
अब आ जाया जाय सीधे मुद्दे पर |
बंधू मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ | यहाँ आपको सही करना चाहुंगा कि चत्रधर महतों पकडे गए थे न कि मारे गए थे |

खुशी हुई जानकर कि पुलिस के तौर-तरीके पर आपको भी आपत्ती है | मतलब व्यवस्था में खोट आपको भी नज़र आता है | आपने कहा है कि नक्सलियों के घिनौने कार्य से भी आपको आपत्ती है, तो बंधुवर आपको बता दूँ कि हमले की शुरुआत वो नहीं करते हैं | उन्हें आपत्ती है सरकार के नुमाइंदे से जिनके द्वारा प्रायोजित हिंसा की जाती है |

पिछले दिनों बस्तर में कोबरा फोर्स ने 12 माओवादियों और 18 निर्दोष लोगों को मार डाला था | वहीं आंध्र में जब माओवादियों के केन्द्रीय सदस्य राज्य के मुख्य सचिव से मिलने जा रहे थे तो उनकी ह्त्या कर दी गयी | तो क्या गलत होता है जब माओवादी जवाबी कार्रवाई करते हैं |

अगर हम आम जन-मानस की बात करें तो साहब क्या आपको नहीं लगता है कि इन माओवादियों को आदिवासियों का स्नेह और समर्थन मिलता रहा है | और अगर ये आदिवासी और दबे-कुचले लोग उनका समर्थन करते हैं तो इसके कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कारण भी हैं |

जब बंगाल में प्रति व्यक्ति न्युनतम मजदूरी 85 रु थी तो इन आदिवासियों को मात्र 22 रु दिए जाते थे | कागज़ मील मालिक 50 पैसे प्रति बण्डल के हिसाब से बांस खरीदते थे, माओवादियों ने इनकी आवाज को उठाया इनके हक के लिए लड़ा | आज वही मील मालिक उसे 55 रु प्रति बण्डल खरीदने लगा है | देश के करीबन 1200 ऐसे गावं हैं जहाँ के लोगों को प्रतिदिन इनके द्वारा स्वास्थ्य की सेवाएँ मुहैया करवाई जाती है |
जनाब लालगढ़ के लोग तो सरकार से एक अदद अस्पताल मांगते-मांगते थक गए, उन्हें मिला नहीं | जब चन्दा-चुटकी कर लोगों ने अस्पताल बनवा लिया तो उसे सेना की छावनी बना दि गयी |

सिर्फ सरकार ही नहीं हमारी सामाजिक व्यवस्था भी उतनी ही दोषी है | बड़े शहरों में रहकर हम ये अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि दूर गावं में सर्वहारा कैसे गुजर-बसर करता है |
बिहार के डुमरी गावं की घटना है पलटू (जाति से जुलाहा है) ने अपनी छठी क्लास में पढ़ रही बच्ची की शादी कर दिया क्यूंकि वहाँ के ही एक राजपूत के लौंडे ने उसके घर में घुस कर उसके साथ जिस्मानी सम्बन्ध बनाने की कोशिश की थी | कोई चारा न देख उसने बच्ची की शादी करने में ही भलाई समझी |
जा कर देखिये जनाब प्रखंड और ब्लॉक द्वारा दिए जाने वाले अनाज को जिससे लाल कार्ड और पीले कार्ड वाले अपनी भूख मिटाते हैं | हम और आप पैकेट बंद चावल खाने वाले उसे देखेंगे तक नहीं |

समुचित समाधान के लिए हार हाल में व्यवस्था को बदलना ही होगा, सर्वहारा के कम से कम जीने योग्य ज़िन्दगी के बारे में सोचना ही होगा, हमको और आपको | नहीं तो ये क्रान्ति अनवरत जारी रहेगी |
फैज़ साहब कि ये पंग्ति याद रखियेगा, कि….

"जब अर्जे खुदा के काबे से सब बुत उठ्बाये जायेंगे
हम अहले सफा, मरदूदे हरम, मसनद पे बिठाए जायेंगे
सब तख्त गिराए जायेंगे, सब ताज उछाले जायेंगे "


देर-सबेर ये पंग्तियाँ अक्षरशः सत्य साबित होंगी |

11 comments:

  1. shashi..honestly saying..look both of u hv ur own valid point n i cant comment which 1 is wrong or right...Hinsa,chahe jo b kare wo galat hi hai..kitni b dalil di jaaye uske favour me jo galat hai wo hai...aur i m not so political...so i dnt wanna comment on it any more...i jst said what wz my view...bt u guys hv realy a good conversation..which is also giving a lot of knwldge..keep it up dude

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  2. dono apani jagah ar thik hin hai bt shashi ji apane apane point ko behad taarkik dhang se uthaya hai.
    shukriya

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  3. सागर साहब...
    ये सत्य है कि जिन लोगों के साथ अन्याय हुआ है,उनके द्वारा विरोध करना जायज़ है..पर ये विचारणीय है कि तीव्र हिंसा का रुख अख्तियार करना कितना उचित है | सभी शीर्ष माओवादी कहते हैं यदि किसी क्रान्ति के लिए हज़ारों लोगों की ह्त्या करनी पड़े,तब उन्हें इतनी हत्याएं करने से कोई गुरेज़ नहीं | उनकी यह दलील कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आती | बेहतर समाज की पुनर्स्थापना के लिए निर्दोष लोगों की जान लेना क्या श्रेयस्कर है? हाँ यदि आप इस देश के गुंडों,मवालियों की हत्या कर रहे होते ,तब बात दीगर थी पर यहाँ तो आप स्वयं ही गुंडाराज़ फैलाए हुए हैं फिर आपके इन कृत्यों को औचित्यता का जामा कैसे पहनाया जाए ? केवल और केवल हिंसा के बल पर राज़ नहीं किया जा सकता | और आपने क्षेत्रीय आदिवासियों के द्वारा सहयोग मिलने की बात कही है..पर यह सर्वविदित है कि सहयोग किसके द्वरा किसको मिल रहा है| एक लाल चींटी आती है और देश को खोखला कर जाती है | यकीन मानिए आतंकवाद से ज्यादा खतरा देश को नक्सलवाद से है |
    हाँ ऐसे मुद्दे उठाये जाने बहुत आवश्यक हैं ,जरूरी है दोनों पक्षों की मांगों और बंधनों को जाना जाए |
    साधुवाद|

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  4. शशि भाई,
    सबसे पहले तो आपको और मोहित जी को साधुवाद !! आपने देश की एक ज्वलंत समस्या को लेकर गंभीर बहस की शुरुवात की.
    शशी भाई मैं बहुत विनम्रता से माफ़ी चाहूँगा, कि मैं किसी भी समस्या के समाधान के लिए हिंसा का पक्षधर नही हूँ. मैं इस बात में विशवास रखता हूँ कि "घृणा पाप से की जानी चाहिए पापी से नहीं". मैं आपकी इस बात का समर्थन करता हूँ कि दूर बंद कमरों में बैठकर आदिवासियों के कठिन जीवन की कल्पना करना भी संभव नहीं है. आदिवासियों को उनके मूल भूत अधिकार मिलने ही चाहिए. इसमें कोई दो राय भी नहीं. इसके लिए हमें और खुद आदिवासियों को एक लम्बी लड़ाई लड़नी होगी ये भी सच है. किन्तु ये लड़ाई हिंसात्मक हो ये ज़रूरी नहीं. आदिवासियों की आड़ लेकर फैलाये जा रहे नक्सलवाद की आग हमारे देश को झुलसा कर रख देगी. क्या इस हिंसा से अभी तक आदिवासियों का कुछ भला हो पाया है जो आगे होगा. ज़रुरत शायद इस बात की है आदिवासियों को मानसिक संबल दिया जाये. उनको शिक्षा के स्तर पर ऊपर उठाया जाये. इस काम के लिए के लिए सरकारी सहायता की जगह निजी सामाजिक संगठनों की सहायता ली जाये. ज़रुरत आदिवासियों को राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने की है ना कि हिंसात्मक तरीके से अलग थलग करने की.

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  6. एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
    इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
    i think there is no way to fight police atrocities against tribal. govt captures their land and term them as naxal. a farce.... i am in favor of sanguinary battle.
    जब बंगाल में प्रति व्यक्ति न्युनतम मजदूरी 85 रु थी तो इन आदिवासियों को मात्र 22 रु दिए जाते थे | कागज़ मील मालिक 50 पैसे प्रति बण्डल के हिसाब से बांस खरीदते थे, माओवादियों ने इनकी आवाज को उठाया इनके हक के लिए लड़ा. it brings more people like me to write...thank u sashi jee

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  7. सागर जी,
    आपने सही जवाब दिया है मोहित बाबू की असहमति पर| आपकी बात अक्षरशः सत्य है इस समस्या के मूल कारण को आपने बताया है, वहीं मोहित जी भी अपनी जगह सहीं हैं, क्यूंकि वो इस समस्या से जुड़े खुनी आन्दोलन को गलत कह रहे हैं| बस बात को समझने का फर्क है| मैं मोहित जी की प्रतिक्रिया पर पहले भी अपने विचार लिखी हूँ, फिर से उसे हीं लिख रहीं हूँ| क्यूंकि आप हों मैं हूँ या मोहित जी या कोई भी इंसान खूनी क्रान्ति नहीं चाहता, देश हीं नहीं दुनिया में अमन चैन चाहता है|
    आपने लेख में जो कहा है वो शायद मोहित साहब समझ नहीं पाए हैं| आपने कहीं भी नक्सलवाद को उचित न कहा है, बल्कि इसके पनपने की वजह बताया है| एक आम अवधारणा सी बन गई है कि अपने हक़ के लिए लड़ने वाला नक्सली है| जबकि नक्सलवाद की शुरुआत जब हुई थी अपने अधिकार को पाने केलिए, लेकिन अब वो नक्सलवाद नहीं रहा| नक्सलवाद के नाम पर अपराधी अपने अपराध को अंजाम देते हैं, और इसी वजह से कोई भी आम इंसान जब अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाता है तो उसे नक्सली कह कर कुचल दिया जाता है| इनसे आग्रह करें कि वो दुबारा से आपके लेख को पढ़े| आज नक्सलवाद और माओवाद के नाम पर जो अपराध हो रहे हैं वो कोई क्रान्ति नहीं है बल्कि अपराधियों की साजिश है| कोई भी गरीब किसान किसी वाद से जुड़ना नहीं सिर्फ दो वक़्त कि रोटी और सुरक्षित जीवन चाहता है| आपकी सोच और लेखनी यूँ हीं सशक्त रहे, शुभकामनायें!

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  8. shashi daa i have gone through ur two of letters posted on ur blogs "सहमति का विवेक" "असहमति का साहस" mohit jee ho aap ho ya mai is desh me koi bhi insaan ye nahi chhahta ki wo chain se naa rahe in dono patro me virodhdbhaash dikhta hai lekin hum sabon ki soch alaga alag hai aur hamaare tarike bhi alag hai lekin hum jis samasya ke samadhan ke liye ladai kar rahe rahe hai uska mool kahi ek ho jaata hai aisa mohit jee ki abhivyakti se saaf pratit hota hai aur hum bhi aisi hi soch rakhte hai. Ism ki apni jagah hai aur ye jaroori nahi ki hum vaad ko apna kar hi desh me kranti ke baare me soch sakte hai

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  9. भई बाकी तो ठीक है, लेकिन धीर साहब की यह बात पहली बार ही सुनी है कि सभी शीर्ष माओवादी कहते हैं कि क्रान्ति के लिए हज़ारों लोगों की हत्‍या करने में उन्‍हें कोई गुरेज़ नहीं है....
    वैसे, मैं खुद भी नक्‍सलियों ''वामपंथी'' आतंकवाद के रास्‍ते से सहमत नहीं हूं....लेकिन ऐसा किसी माओवादी नेता ने कहा है यह ध्‍यान नहीं आता

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  10. dear,
    i donno much about this socialism in its red eyed and kill them all attitude but,all i know and agree with prem that how can one justify the atrocities against atrocities?how do we differentiate????????
    well if one kills 6 million people do you think someone should kill 6 million of next generation of him.
    personally i don believe in the chain of massacres.
    why don they get big fihses.derailing common life can never pacify the hatred.everyone tries us.what would you say about a family killing in khagaria.you should have got the one who surreptitiously rusts our home.
    why stop train?
    why burn houses?
    why destroy infra of common people?
    why try to deduce that they are different country?
    paying 22/- instead of 85/- has not been decided by those being killed.the one decided is flying high.why not catch them if we can.
    the rest of 63/-is being eaten or dispatched to swiss bank by the whales of our system.they eat the grasses for cattles or burn all the coals in their kitchen.we are left with those 22/-.if you can't get them no justice will ever be done.
    anyways sorry for me being a bit derailed from your topic.
    you just got the thing right.as i said all this is my opinion.can be out of order.
    dont laugh if i might have missed at this.
    this is first time i am writing you.
    thank you.

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  11. संदीप जी,
    मेरी comment में उद्धृत पंक्ति को पढ़कर आपका चौंकना स्वाभाविक है.जब मैंने भी पहली बार ऐसा पढ़ा था,तब मुझे भी यह कुछ असंगत प्रतीत हुआ. हालांकि आप भी जानते हैं कि इसमें नया कुछ भी नहीं कहा गया है .माओवाद का मूल सिद्धांत ही यही है कि गुरिल्ला युद्ध के द्वारा कृषक या सर्वहारा वर्ग के हितों की रक्षा के लिए सतत क्रान्ति बनाये रखना. माओवाद केवल हिंसा के द्वारा सत्ता पर काबिज होने के पक्ष में है ;माओवादी 'extreme violence' में विश्वास रखते हैं और यह अपने पूर्ववर्ती मार्क्सवाद से इस मायने में भिन्न है .और यही सब वे अभी तक करते आये हैं ..चाहे आप लालगढ़ देखें या कोई अन्य उदाहरण ले लें. और CPI(maoist) पर तत्कालीन UPA government द्वारा ban लगाये जाने या उड़ीसा,आन्ध्र-प्रदेश और अन्य प्रदेशों में इसके प्रतिबंधित होने का कारण इसकी आतंकवादी गतिविधियाँ ही हैं...हाँ यदि आप व्यक्तिगत नाम ही जानना चाहते हैं तब मुझे पुरानी पत्रिकाओं के ढेर में से उपयुक्त आलेख खोजना पड़ेगा.मैंने वह 'क्रान्ति के लिए हज़ारों लोगों की हत्या से गुरेज़ न होने' वाली बात शब्दशः CPI(maoist) के एक शीर्ष नेता के interview में पढ़ी थी . मिलते ही आपको भी नाम जरूर बताऊंगा.
    शुभेक्षु
    ......

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