Wednesday, April 6, 2011

बिहार दिवस अथ इमेज बिल्डिंग की क़वायद


बिहार दिवस के दौरान ऐसा ताना-बाना बुना गया मानो बिहार का कायाकल्प हो गया। अकेले पटना में करोड़ों रूपये खर्च कर भव्य आयोजन किया गया। हर जिले को तकरीबन तीन लाख की राशि बिहार से आयोजन पर खर्च करने को दिये गए।

राज्य प्रायोजित इस आयोजन से आम आदमी का हित सधता कहीं नहीं दिखा। यह महज़ एक प्रशासनिक कार्यक्रम भर रहा। पूरे तीन दिनों के इस भव्य आयोजन में सरकार अपनी पीठ खुद थपथपाती रही। बिहार दिवस यानि बिहार विज्ञापन के इस मौके़ पर देश के कई हिस्सों से कलाकारों के साथ-साथ राजनेताओं को भी आमंत्रित किया गया। लेकिन सत्ता के मद में चूर नीतीश प्रोटोकॉल भी भूल गए। विपक्ष का एक अदना विधायक भी इस कार्यक्रम में कहीं शरीक नहीं हुआ।
कोई शक नहीं कि विकास नहीं हुआ है। लालू-राबड़ी राज की अपेक्षा बदलाव जरूर नज़र आते हैं। चिकनी-चुपड़ी सड़कें और साइकिल से बच्चियों का स्कूल जाना बड़ी ही आसानी से दिख जाता है। अपनी जीडीपी ग्रोथ रेट को लेकर सुशासन बाबू तो वाहवाही पहले ही बटोर चुके हैं लेकिन सच्चाई कुछ और भी है। जीडीपी के बढ़ने के बाद भी बिहार के मानव विकास सूचकांक में कोई खास अंतर नहीं आया है। आज भी बिहार की 70 प्रतिशत आबादी 20 रूपये रोजाना पर जीने को विवश है।

तीन दिवसीय इस आयोजन में करोड़ों खर्च किये गये लेकिन सरकार ने एक बार भी उन विभागों के बारे में नहीं सोचा जिन्हें पिछले 5-6 महीनों से वेतन नहीं दिया गया। यह बिहार दिवस का आयोजन सरकारी अस्पताल और स्कूलों के कर्मचारियों के जले पर नमक लगाने जैसा था। इन कर्मियों को पिछले 6-7 महीनों से वेतन नसीब नहीं हुआ है।
बिहार विकास की पटरी पर सरपट दौड़ रही है। ऐसा सरकार कहती है और इसे और बेहतर तरीके से परोसती है बिहारी मीडिया। बिहार की पूरी मीडिया इस पत्रकारिता में लगी हुई है। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ी है। लेकिन पिछले साल एक गै़रसरकारी संस्था ‘असर’ ने रिपोर्ट जारी किया कि बिहार के स्कूलों में ऐसे बच्चों की संख्या काफी बढ़ी है, जो पढ़ते तो हैं पांचवी में परन्तु उन्हें दूसरी कक्षा की भी पूरी जानकारी नहीं है।

बिहार को विकसित बनाने का सपना और उसके लिए प्रयासरत हमारे मुख्यमंत्री आये दिन केन्द्र पर आरोप लगाते रहते हैं। पिछले कुछ दिनों से सूबे में बिजली की संकट भी चली आ रही है। बिहार दिवस के दौरान पूरे सूबे से बिजली की कटौती कर पटना के गांधी मैदान को जगमगाया जा रहा था। इन तीन दिनों के दौरान भागलपुर, कटिहार, नवादा और शेखपुरा में लोगों ने बिजली को लेकर जमकर हंगामा किया और आगजनी की घटना को अंजाम दिया। कई जिले तो 24-24 घंटों तक बिजली से महरूम रहा।
इधर बिहार दिवस के समापन पर नवादा जिले में वहां के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने बार-बालाओं के नृत्य भी सरकारी खर्चे पर करवाये। यह मामला विधान सभा तक भी पहुंचा और हंगामा हुआ।

बिहार दिवस के आयोजन को नीतीश सरकार ने राजग गठबंधन के प्रचार का मंच बना दिया। विकास हुआ है इसमें दो मत नहीं, लेकिन इसका प्रचार इतना अधिक किया गया कि जिससे जनता को भी यह भ्रम हो जाए कि बिहार सही में एक विकसीत राज्य बन रहा है। लेकिन शायद सरकार यह भूल गई कि भूखी जनता को समारोह नहीं बल्कि रोटी चाहिए।

3 comments:

  1. मीडिया भी इनदिनों नीतीश सरकार की हिमायत करती नज़र आ रही है. जनता को भी भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है. बिल्कुल यथार्थ आलेख.

    ReplyDelete
  2. बढियां लिखे हैं भाई .......ऐसे आलेखों को नीतीश जी तक संप्रेषित किया जाए

    ReplyDelete

देखा-सुनी