Wednesday, January 12, 2011

उम्मीद है उम्मीदों पर नहीं फिरेगा पानी


सूबे के सरदार इनदिनों कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. मातृशोक से अभी उबर भी नहीं पाये थे कि विधायक हत्याकांड ने एक नया बखेरा खड़ा कर दिया.

सूबेदार की चुप्पी पर भी लोगों ने सवाल खड़े करने शुरु कर दिये थे. एक तो करेला उपर से नीम चढा वाली कहावत को एन वक्त पर हमारे मोदी साहब ने और चरितार्थ कर दिया. तथ्यों की पड़ताल किये बिना ही उन्होंने रूपम पाठक को ब्लैकमेलर तक कह दिया. आखिरकार नीतीश ने हत्या कांड की C.B.I जांच हो इसकी सिफारिश कर ही दी. एक महिला का हथियार उठा लेना और थोड़ा पीछे देखें तो नीतीश ने अपने एक चुनावी सभा के दौरान विधायक केसरी को मंच से जाने को कह दिया था. ये दोनो ही बातें इतना बताने को काफी हैं कि दाल में काले का अंश है. एसे में रुचिका गिरिहोत्रा का मामला याद आता है. दोषी साबित होने के बाद एस. पी. एस. राठौर से सम्मान और पदक छीन लिये गये थे. कहीं हमारे उप-मुख्यमंत्री को को ये न कहना पड़े कि हमे सच्चाई क पता न था. हम शर्मिंदा हैं. आये दिन रूपम पाठक के पक्ष में स्वर मुखर हो रहे हैं. इसी घटनाक्रम में एक स्थानीय पत्रकार का गिरफ्तार होना और बिहार की पूरी मीडिया का चुप्पी साध लेना एक विडंबना ही कही जायेगी.

ताजपोशी के तुरंत बाद सरदार ने भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने की बात कही थी. कई महकमों एवं अधिकारियों को हड़काया और चेताया भे. इस क्रम में मुख्यमंत्री सचिवालय को भूल जायेंगे एसी उम्मीद नहीं है. जहां एक मामूली सी सिफारिश के लिये भी रिश्वत की दरकार पड़ती है.

एक और समस्या जो सुरसा की तरह मुंह बाये इनकी तरफ दौड़ी आ रही है. मुजफ्फरपुर के मरबन में बन रही एसवेस्टस फैक्ट्री कहीं इन्हें मुश्किल में न डाल दे. अभी हाल ही में मजदूरों के धड़ने को जिस तरह से बंदूक के बल पर कम्पनी के मुलाजिमों ने खदेड़ा, और शासन-प्रशासन के रवैये से लगता है दूसरे नंदीग्राम की जमीन तैयार की जा रही है. भूमि अधिग्रहन से लेकर अब तक वहां की खेतीहर जनता को बालमुकुंद एंड कम्पनी ने ठगने का ही काम किया है. लगभग ५६ देशों में बैन होने के बाद यह बताना जरूरी नहीं है कि एसवेस्टस फैक्ट्री किस हद तक घातक होती है. एक तो घनी आवादी वाला क्षेत्र उसमें भी कृषि योग्य भूमि पर फैक्ट्री लगाने की इजाजत दे देना नादानी ही दिखती है. विकास के इस अंधी दौड़ में कहीं जमीन के लोग कुचल न दिये जायें. उम्मीद है हमारे विकास पुरुष इस बात का ख्याल रखेंगे और सभी मुश्किलों से पार पा जायेंगे.

3 comments:

  1. बहुत दिनों बाद लिखा शशि...अच्छा लगा पढ़कर...विकास कार्य की सबसे मुश्किल राह यही होती है कि कैसे सबको लेकर चला जाए...कि विकास कैसे सबका हो सके न कि कुछ या फिर अधिकांश का...रूपम पाठक के ऊपर कोई तो ऐसा है जिसे मीडिया के चुप रहने पर खीझ होती है...फेसबुक पर पढ़ा था...और पढ़कर लगा कि नए पत्ते संवेदनशील मुद्दों पर कोमल हैं और उम्मीद हुई कि नाउम्मीदी का दामन ओढ़ने का समय अभी भी दूर है...बहुत-बहुत धन्यवाद इस उम्मीद को जगाए रखने के लिए शशि...

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  2. bahut achha likha hai. jaane bihaar ka kya ho? vikaas ke naam par jo ho raha uske baare mein ab kuchh kahna bhi vyarth lagta. yun hin likhte rahiye, shubhkaamnaayen.

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