Wednesday, August 19, 2009

मुहब्बत कौन निभाएगा

बाद मसरूफियत के जो प्यार बच पायेगा
दंगे धमाके से वो भी कुचला जायेगा

गर इसी तरह नफरत के बीज बोए जायेंगे
मैं गुलाल किसे लगाऊंगा तू गले किसे लगायेगा

कुछ सेवैयाँ खरीद लाया हूँ बाजार से
पर उसमें इदी का प्यार कैसे आएगा

उसे फिक्र है बदनाम हो न जाऊँ कहीं मैं
वो मुसलमान है पता नहीं कब पकड़ा जायेगा

सरियत की बातें करता है आस्था की दुहाई देता है
बता सागर ऐसे में मुहब्बत कौन निभाएगा

:- द्वैमासिक पत्रिका "परिंदे" के अगस्त-सितम्बर 09 अंक में प्रकाशित |

9 comments:

  1. सरियत की बातें करता है आस्था की दुहाई देता है
    बता सागर ऐसे में मुहब्बत कौन निभाएगा
    bahut hi waajib prasan hai ............ek sundar banawat our bunaawat ki rachana......badhaaee

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  2. गर इसी तरह नफरत के बीज बोए जायेंगे
    मैं गुलाल किसे लगाऊंगा तू गले किसे लगायेगा

    बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. gar isi tarah....kafi sanzeeda hai..wakai behtareen...

    prakashit hone ki bahut badhai...
    kalam ki jai ho!!!

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  4. उसे फिक्र है बदनाम हो न जाऊँ कहीं मैं
    वो मुसलमान है पता नहीं कब पकड़ा जायेगा

    sahee masla chhed baithe hain aap...

    kaash ye kavita hamare majhab-parast bhaai ko aur prashaasan ko kuchh seekh de paaye...

    bahut khoob

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  5. bahut khoob shashi...behad khoobsoorat

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  6. जब कोई मस्तानी सी कलम दुखती सी कसकों और दिखती सी आपदाओं के बीच अपने जीवन के अनंत बैभव को अनोखे अन्होनेपन की भाषा देता है तो अभिव्यक्ति स्वयं प्रस्फुटित हो जाती है meri taraf se apki is rachna ke liye bus itna hi

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  7. lage raho dude............
    "गर इसी तरह नफरत के बीज बोए जायेंगे
    मैं गुलाल किसे लगाऊंगा तू गले किसे लगायेगा"........
    Pyar sametne ka achha tarika hai

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  8. वो रह जाएगा हिन्दू वो रह जाएगा मुसलमाँ
    तो इस दुनिया में इंसाँ कौन कहलाएगा
    ...
    ..
    काश के हम सब इस दुनिया में रहते ही गले लगाने की कीमत जान पाते...काश के हम जान पाते कि इस दुनिया से चल देने के बाद लाख कोशिशों पर भी किसी को लगाने के लिए हमारे हाथों में गुलाल नहीं आ पाएँगे..

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  9. koi aansu bahata hai,koi ghut kar rah jata hai,
    ek kavi hi hai jo peeda ko alfazon se sajata hai....!

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