Thursday, October 14, 2010

हंगामा है क्युं बरपा……..!

हैरान करने वाली बात है कि अंधभक्त और जुझारू कार्यकर्ता आज अपनी-अपनी पार्टियों से नाराज हैं. पिछले कई दिनों से राज्य की हर बड़ी पार्टी कार्यालयों के भीतर या बाहर रिआया अपने राजा के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही है. कहीं नंग-धड़ंग प्रदर्शन, कहीं नारेबाजी तो कहीं तोड़-फोड़ और धक्का-मुक्की भी. विरोध दर्ज कर रहे ये कार्यकर्ता और उनके समर्थक कई सालों से पार्टी के झंडाबरदार हैं और पिछले कई महीनों से उम्मीदवारी के लिये पटना में पेटकुनियां दिये हुए हैं.
बीते दिनों भाजपा कार्यालय में तोड़-फोड़ और गाली-गलौज का नजारा था. बेगुसराय विधानसभा से विधायक श्रीकृष्ण सिंह को टिकट नहीं देकर सुरेंद्र मेहता को उम्मीदवार बनाया गया. श्री सिंह उपचुनाव जीत कर विधानसभा आये थे. इस सीट पर कभी तुनक मिजाजी सांसद भोला सिंह का अधिकार हुआ करता था. खबर यह भी है कि पार्टी इस बार उनकी बहु को टिकट दे चुकी है. वैसे पिछली बार उपचुनाव में अपनी सीट से बेटे को प्रत्याशी बनाना चाहते थे.
अब एसे पुत्रमोह और परिवार मोह देख रिआया नाराज होती है तो राजा की क्या गलती !
बेगूसराय के ही बछवाड़ा विधानसभा से कुंदन सिंह को प्रत्याशी बनाये जाने से भी कार्यकर्ताओं मे आक्रोश है. जनता के पास कुंदन सिंह के एक-एक दिन का हिसाब है कि उन्होंने भाजपा के लिये क्या, कितना और क्युं किया है. ग्यात हो कि ये उसी उपेंद्र सिंह के पुत्र हैं जो पिछली बार लोजपा के प्रत्याशी रह चुके हैं और इस बार भी उनके चुनाव लड़ने की संभावना प्रबल है.
इतना ही नहीं कुचायकोट के कार्यकर्ताओं ने भी भाजपा कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया. इनलोगो का कहना था कि पहले ये कटेया विधानसभा थी परिसीमन के बाद यह कुचायकोट हो गयी है. इस सीट से भाजपा के मिथलेश सिंह चुनाव लड़ते थे. अब जदयू इस पर अपनी दावा ठोंक रही है.
उधर जदयु कार्यालय की स्थिती भी बेहतर नहीं हैं. पार्टी कार्यालय के गेट पर लटक रहा ताला कार्यकर्ताओं का मुंह चिढा रहा है. असंतोष के कारण कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन यहां भी देखने को मिल रहा है.
विधान सभा अध्यक्ष उदय नारायन चौधरी के खिलाफ नारेबाजी करते हुए जदयू कार्यकर्ताओं ने नंगे बदन प्रदर्शन किया. उनका आरोप था कि श्री चौधरी के प्रभाव में आकर शेरपुर से विनोद यादव को प्रत्याशी बनाया गया है. नाराज कार्यकर्ताओं का कहना था कि शेरपुर से किसी स्थानीय कार्यकर्ता को ही टिकट दिया जाय. जदयू के ही महादलित प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार सदा भी नाराज दिखे. और यह कहते हुए अपने पद से इस्तिफा दिया कि टिकट बंटवारे में महादलितों की उपेक्षा हुई है. उन्होंने कहा कि अलौली से उन्हें टिकट देने की बात थी लेकिन क्या कारण रहा कि अचानक रामचन्द्र सदा को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया.
मकदमपुर से मंत्री जीतन राम मांझी को प्रत्याशी बनाये जाने के कारण विरेंद्र पासवान के समर्थकों ने भी जम कर हो-हल्ला किया.
सुशासन कुमार के सुशासित कार्यकर्ता आज उनपर ही टिकट बंटवारे को लेकर फर्जीवाड़े का आरोप लगा रही है. फिलहाल सुशासन बाबु के पास अपने नाराज सिपाहियों के सवालों का जवाब नहीं ही है.
अब तो सुप्रिमों के खिलाफ भी विरोध के स्वर बेखौफ फूटने लगे हैं. अभी पिछले ही दिनों गुस्साये कार्यकर्ताओं ने पटना स्थित कार्यालय में जमकर हंगामा किया. पार्टी के कोई पदाधिकारी तो वहां मिल नहीं पाये, बेचारी कुर्सियों को इनके गुस्से का शिकार होना पड़ा. कार्यालय के कर्मचारी प्रदर्शन थमने के बाद भी बाहर निकलने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहे थे.
महुआ मुकुंदपुर पंचायत की मुखिया मंजू देवी ने राजद सुप्रीमो पर पैसे लेकर सीट का सौदा करने का आरोप लगाया है.
एम.पी(मुखिया पति) कामेश्वर राय का यहां से टिकट लगभग तय था. मुखिया मंजु देवी ने कहा कि सुप्रिमों के कहने पर चुनाव की तैयारी चल रही थी अचानक उन्होंने योगेश्वर राय का नाम घोषित कर दिया.
पूर्व मुख्यमंत्री रावड़ी देवी इस बार राघोपुर और सोनपुर दोनो विधानसभा से चुनाव लड़ेंगी. राजद के विभिन्न पदों पर रह चुकीं समर्पित कार्यकर्ता नूतन पासवान से जब इस मुद्दे पर बात हुई तो उनका कहना था कि राजद में सिर्फ रावड़ी ही एक महिला हैं इसिलिये उन्हें दो-दो जगहों से लड़वाया जा रहा है. बात ही बात में उन्होंने जय प्रकाश नारायण को लालू का लोकनियां बताना नहीं भूला. पार्टी के रवैये से खासे नाराज नूतन पासवान ने कहा कि लालटेन तो बुझेगी ही लेकिन झोपड़ी को जला कर ही.
लोजपा की स्थिती भी औरों जैसी ही है. यहां भी कार्यकर्ताओं की नाराजगी साफ तौर पर दिख रही है. कई दिनो से कार्यकर्ता लोजपा दफ्तर के बाहर धरना पर बैठे हुए हैं. जिनकी उम्मीद टूट गयी वो निराश हो अपने शहर, गाँव लौट रहे हैं. धरना पर बैठा हर दूसरा आदमी इसे परिवार लिमिटेड पार्टी कहने से नहीं चूक रहा है. और एक इनके अध्यक्ष महोदय हैं जो बड़े ही कुतार्किक ढंग से परिवारवाद को खारिज करते आ रहे हैं.
निराश हो कर लौट रहे भागलपुर दुसाध महासभा के महासचिव चंद्रदेव पासवान ने झल्लाते हुए कहा कि बेच लिया है सब टिकटवा. उन्होने बताया कि तिरपैंती विधानसभा की सीट को पार्टी ने पचास लाख में एन.के.यादव को बेचा है.
सबसे बुरी हालत तो कांग्रेस की है. नाराज कांग्रेसियों ने हवाई अड्डे से बाहर निकल रहे विधायक दल के नेता डा. अशिक कुमार पर हमला बोला वहीं प्रदेश अध्यक्ष मह्बूब अली कैसर से तो कार्यकर्ताओं की हाथा-पाई भी हो गयी.
पटना के अलावा भी कई अलग-अलग जिलों मे कांग्रेसियों ने हंगामा किया है. गोपालगंज और सहरसा से थोड़-फोड़ की खबर है वहीं पुर्णियां में कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस दफ्तर को ही आग के हवाले कर दिया.
धमदाहा से डा. इरशाद खाँ के चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है जबकि यहां के स्थानिय लोगों का कहना है कि अमरनाथ तिवारी यहां के ससक्त उम्मीदवार हैं.
नौतन, महुआ और तरैया से आये कार्यकर्ताओं ने कहा कि जब तक न्याय नहीं मिलेगा विरोध जारी रहेगा.
फिलहाल खबर है कि भाजपा और कांग्रेस भी अपने कुछ घोषित उम्मेदवारों के नामों पर पुनर्विचार करेगी.
लगातार हर दल के कार्यकर्ताओं के द्वारा कहीं ज्यादा कहीं कम रूप से प्रतिरोध जारी है. कहीं ऐसा न हो कि रहनुमाओं को अपनी जनता पर से विश्वास उठ जाये और इसे भंग कर नयी जनता चुन ली जाय.
फिलहाल जो प्रतिरोध की प्रवृति पनपी है वो कितना कारगर और टिकाउ होगी देखने की बात है.

Thursday, August 5, 2010

आओगे जब मैं तुमको गले लगा लूंगा


कर यकीं तेरा दामन मैं बचा लूंगा
तेरी करतुतों को दिल में दबा लूंगा

दोस्त हो फिर गैरों सा बर्ताव क्युं
वार तुमसे तो सीने पे भी खा लूंगा

आस थी तुमसे सगे भाई से अधिक
इस चाह को अब सीने में छुपा लूंगा

कौन दोषी है ज़रा यार पता करना
मैं तो नहीं, अंतर्मन से बतिया लूंगा

चलन भरोसे का कहीं उठ न जाये अब
आओगे जब मैं तुमको गले लगा लूंगा

Monday, April 26, 2010

लाल, लाल और हर जगह लाल होगा


अगर हालात नहीं बदलने वाला है

ये हंगामा भी कहां थमने वाला है

चीख कर घोषणा ये संसद में हुई

जंगलों का महल अब उजड़ने वाला है

सोचो अमंबानियों के हित मे जम कर

आक्रोश अभी और ये धधकने वाला है

कभी तूने कभी उसने है किया लाल

आवाम की कौन यहां सुनने वाला है

वो स्तन काटे, वो रेप करे, हम चुप रहें

तब कहेंगे ये हिंदुस्तान संवरने वाला है

कुपोषण, भूख, प्यास तुम क्या जानोगे

बैठ के दिल्ली से कहां ये दिखने वाला है

सत्ता के लोभ में जो भी इनके पास थे

कहने लगे जख्म नासूर बनने वाला है

लाल, लाल और हर जगह लाल होगा

तेरा रवैया गर नहीं सुधरने वाला है

Thursday, April 1, 2010

शिक्षा और व्यवस्था का रवैया

व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास और उसकी संभावनाओं को अनंत आकाश देने के लिये शिक्षा का होना अनिवार्य है । अनिवार्य होने से यहाँ मेरा तात्पर्य है कि शिक्षा हमारा मौलिक अधिकार हो ।
कहने को तो हमारा देश दुनियां का सबसे बडा लोक्तांत्रिक देश है, परन्तु आज़ादी के साठ साल बाद भी शिक्षा हमारे मौलिक अधिकार में शामिल नहीं हो पाई है ।
किसी कस्बे, जिले या युँ कहें कि देश का विकास प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वहां के शैक्षणिक व्यवस्था पर निर्भर करती है ।
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, एक आंकलन के मुताबिक कुल जनसंख्या का 54 प्रतिशत हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु का है । इसका मतलब यह हुआ कि और देशों की तुलना में यहाँ काम करने को ज्यादा हाथ और दिमाग हैं । परन्तु यह एक नंगा सत्य है कि इसी 54 प्रतिशत आबादी का बहुत बडा हिस्सा आज भी बुनियादी शिक्षा से भी वंचित है, जिसमें बच्चे भी शमिल हैं । आंकडा यह है कि देश की साक्षरता दर मात्र 65% है और 30 करोड कि आबादी निरक्षर है । इसी बात से अंदाजा लगया जा सकता है कि हमरा देश विकास की ओर किस गति से बढ रहा है ।
आज हमारा देश क्षेत्रवाद, जातिवाद, आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी कई समस्याओं से जूझ रहा है । इसका बस सीधा सा मतलब है कि कहीं न कहीं हमारी व्यवस्था में शिक्षा का लोप होना शुरु हुआ है । आज घर के ही लोग घर हो आग लगाने पर आमादा हुए बैठे हैं । दिनकर जी की ये पंग्ति कि “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है” इस घडी में चरितार्थ होती दिख रही है । आखिर शिक्षा ही तो हमारी सदबुद्धि, विवेक और साकारात्मक सोच की जननी है ।
और हाँ इस बात से भी किनारा नहीं किया जा सकता है कि देश की राजनीति घोर अवसरवादि हो गयी है, नहीं तो महिला आरक्षण विधेयक और शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल करने का मुद्दा अभी तक अधर में नहीं लटका रहता ।
लोकसभा में मुफ़्त एंव अनिवार्य शिक्षा विधेयक 2008 पारित किया गया । संविधान संशोधन 2002 द्वारा एक अनुच्छेद 21(अ) और संविधान मे जोड दिया गया । यह अनुच्छेद राज्य को 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा के लिये जिम्मेवार बनाता है ।
ऐसा माना जात है कि राज्यसभा जनता के हितों के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करती है परन्तु जब इस विधेयक को पारित किया जा रहा था तो सदन की उपस्थिति मात्र 54 थी । और राष्ट्रीय महत्व के इस विधेयक को तो लोकसभा में मात्र दो घंटे मे ही पारित कर दिया गया । इतने महत्वपूर्ण विधेयक पर ऐसी उदासीनता चिंतनिय ही नहीं निंदनीय भी है ।
शिक्षा मंत्री सिब्बल साहब इस विधेयक पर बोलते समय बडे ही गौरवान्वित महसूस कर रहे थे । जबकि सच्चाई है कि उन्होने कोई नया काम नहीं किया है सिर्फ जनता को मूर्ख बनाया है । बडी ही चालाकी से उन्होंने इस सच्चाई से जनता को मरहूम रखा कि सुप्रिम कोर्ट ने उन्नीकृष्णन फैसले के आधार पर पहले ही 0-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार दे दिया है । अब आप ही बतायें कि उन्होनें नया क्या किया । हाँ Public Privet Partnership का नया जुमला जरूर सामने आया । और आता भी क्यों नहीं कॉरपोरेट घरानों से लेकर राजनीतिक घरानों तक सभी के तो स्कुल, कॉलेज और युनिवर्सिटिज के धंधे हैं ही ।
विचारणिय प्रश्न तो यह है कि उन्होनें किस आधार पर 14 वर्ष तक के बच्चों के लिये ही अनिवार्य शिक्षा की घोषणा की, जबकि इसी देश में एक साधरण नौकरी के लिये भी अनिवार्य आहर्ता 12वीं पास की ही होती है ।
1990 में “सभी के लिये शिक्षा” के वैश्विक सम्मेलन में बुनियादी शिक्षा प्रदान करने की प्रतिबद्धता अपनाई गयी थी परन्तु इतने सालों के बाद भी भारत ही नहीं कई देश इस लक्ष्य से पीछे चल रहे हैं ।
शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल करना जरूरी ही नहीं नितांत आवश्यक है । प्रारंभिक शिक्षा को अनिवार्य तथा तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा को सर्व सुलभ बनाने की जरूरत है ।
यह कटु सत्य है कि शिक्षा के प्रति ऐसी उदासीनता सही नहीं है । यही हाल रहा तो देश की गुण्वत्ता का ह्राष होगा ही यह अपनी समस्या में और भी उलझता चला जायेगा ।
तस्वीर: अनुप मिश्रा

Wednesday, February 24, 2010

सचिन का जोश और जोशी जी की कमी

प्रभाष जी, आज फिरआपके सचिन ने दक्षिण अफ्रीका के गोलंदाजों को जमकर धोया । इतना ही नहीं उसने तो फटाफट (वन-डे) क्रिकेट में दोहरा शतक भी लगाया । जानते हैं प्रभाष जी अपने सचिन ने 13 सालों से चले आ हे शईद अनवर के रिकोर्ड को भी ध्वसत कर दिया । आप तो आज देखे ही नहीं क्रिकेट, उनने तो 90 गेंद मे ही अपना शतक पूरा कर लिया और गेंद को रूई की तरह धूनते-धूनते शईद का जो 194 वाला रिकार्ड था न उसे भी नहीं छोड़ा ।

आज तो ऐसे ताबड़-तोड़ खेल रहा था कि क्या बतायें, ऐसा लग रहा था जैसे ये फिर से 19-20 साल का छोरा हो गया हो । हद हो गया, दिनेश कार्तिक, युसुफ पठान. धोनी सब इस छोरे के रंग मे ही रंगे दिखे । सबने जमकर इसका साथ दिया । आज तो आपके छोरे ने फटा-फट में दोहरा शतक ठोक इतिहास रच दिया । कॉलोनी के बच्चे आज आपसे दो-दो टॉफी लेंगे ।

देखिये तो सचिन ने दोहरा शतक क्या लगाया और दोस्तों के मैसेजेज आने शुरु हो गये । मुझे भी खुशी हुई । लेकिन तुरंत ही कुछ कमी लगने लगी ।

काश आज प्रभाष जी होते ।

क्रिकेट के प्रति उनका प्रेम तो जगजाहिर था । हिंदी पत्रकारिता में भी खेलों की खबरों को उनने रुचिकर बना दिया था । सुनील गवास्कर, कपिल किसको नहीं लिखा उन्होने । सराहा भी जरूरत पडने पर आलोचना भी की ।

उनके जाने की खबर जब सचिन को लगी तब तक सचिन सत्रह हजारी हो चुके थे । खबर सुनते ही सचिन ने कहा था कि इस खबर ने उसे बहुत आहत किया है । सचिन खुद कहते हैं कि उनके लिखे को पढ कर मुझे सीखने को मिलता है

सचिन को खेलते देख उन्हें शुकून मिलता था । वो क्रिकेट को आँखों से नही दिल से देखते थे । पिछले साल पाँच नवंबर का दिन । इसी दिन सचिन सत्रह हजारी हुए थे, ऑसट्रेलिया के खिलाफ धुऑ-धार खेलते देख जोशी जी ने जनसत्ता के दफ्तर फोन किया कि आज के क्रिकेट का रिपोर्ट वो खुद लिखेंगे । लेकिन उपर वाले को कुछ और ही मंजूर था ।

आज भी जब सचिन ने दोहरा शतक लगाया तो एक पल को लगा कि कागद-कारे में कुछ मजेदार पढ़ने को मिलेगा । मेरे जैसा आदमी भी कागद-कारे पढ़ दोस्तों के सामने कुछ शेखी बघार लेता था ।

जनसत्ता के पाठकों को सचिन के इस बेजोड़ प्रदर्श पर कागद-कारे और प्रभाष जी की कमी जरूर खलेगी ।


नोटे; इस आलेख को आप www.mediakhabar.com पर भी पढ़ सकते हैं ।

Wednesday, January 20, 2010

बेरहम रहनुमा और बेघर लोग

सुबह-सुबह खबर पढने को मिली कि दिल्ली के अलग-अलग “रैन-बसेरों” में आठ से दस लोगों की मौत हो गयी है ।
दिल्ली को विश्वस्तरीय बनाने की होड़ में सरकार बिल्कुल संवेदनहीन हो गयी है । आम लोगों की तो छोड़िये बेघर लोगों के बारे में भी नहीं सोचा जा रहा है । लगातार “रैन-बसेरों” की संख्या घटाई जा रही है । पिछ्ले साल के मुकाबले इसकी संख्या ४६ से घट कर २४ हो गयी है । एक अनुमान के मुताबिक शहर में दस हज़ार बेघर महिलायें हैं और इन सब के लिये है एक “रैन-बसेरा” ।
इन तमाम बातों पर माथा-पच्ची के बाद स्वभावतः थोड़ी देर व्यवस्था को कोसा फ़िर मैं व्यस्त हो गया अपने दैनिक क्रिया-कलाप में ।
चुंकी इनदिनों कुछ खास काम-धाम है नहीं तो थोड़े पठन-पाठन के बाद अधिकतर समय स्वप्नलोक मे ही विचरता रहता हुं ।
एक-दो गर्म कपड़े पहन रखा था, ठंढ से बिल्कुल महफ़ुज होने के लिये उपर से रजाई भी डाल रखी थी । मेरी रजाई चार साल पुरानी है सो दिखने मे थोड़ी बिमार लगती है । लेटे-लेटे मन ही मन सोच रहा था कि काश फर वाला कम्बल होता तो ठंड मे सोने का आनंद ही दोगुना हो जाता ।
यह सब सोच ही रहा था कि अचानक क्रांति की देवी सर पर सवार हो गयी । सोचने लगा कि अमा यार अपने पास तो किराये की चारदिवारी और छत है, एक रजाई है, एक मोटा गद्दा है अब क्या चहिये । सोचने लगा कि आखिर वो कैसे रहते होंगे जिनके तन पर न तो पर्याप्त कपड़े हैं और न ही सर पर छत है । सोच-सोच कर मन व्यथित हुआ ही जा रहा था कि अचानक मेरी सोच निर्णय में तब्दील होने लगी ।
मैं उठ खड़ा हुआ और अपने पुराने कपड़े निकालने लगा । एक स्वेटर, एक-दो गर्म कपड़े, कुछ पैंट-शर्ट सभी को निकालकर पौलिथीन में रख लिया । शाम हो चली थी सोचा अब रात के भोजन के बाद ही कुछ किया जायेगा । खाना बनाते-खाते रात के १२ बज चुके थे । मुझे लगा कि चीजों को देखने-समझने का यही सही समय है । मेरे मिशन मे मेरा एक मित्र राहुल भी सहभागी बन गया ।
कमरे से निकलने के थोड़ी ही देर बाद ठंड अपने होने का एहसास दिला रही थी । शुक्र था कि उधार में ली हुई गोल्ड फ्लैग की डिबिया मेरे साथ थी जो कभी-कभी मुझे राहत दे रही थी ।
मुनिरका होते हुए आर.के.पुरम से हयात तक सब कुछ व्यवस्थित लगा । सड़क पर इक्की-दुक्की गाड़ी आ-जा रही थी, कभी-कभी पी.सी.आर भैन दिख जाती थी । फुटपाथ पर लोग तो क्या कुत्ते भी नज़र नही आ रहे थे । हयात के करीब पहुंचते-पहुंचते वाकई दिल्ली विश्व्स्तरीय लगने लगी थी । वहां से हमलोग आगे बढे वीकाजीकामा के पास से लोग युं ही खुले मे सोते हुए मिलने लगे । हमदोनों कपड़े निकाल कर सोये हुए लोगों के बगल में रख कर आगे बढ गये । जैसे-जैसे आगे बढ रहे थे स्थिती और भी दयनीय होती जा रही थी । सफ़दरजंग आते-आते हमदोनो भी कांपने लगे थे । परन्तु लोगों की स्थिती देख हमलोग अवाक से हो गये थे ।
कोइ सब-वे की सीढियों पर सोया हुआ था तो कोई अपने रिक्शे पर ही रात गुजारने की असफल कोशिश मे लगा हुआ था । कुछ तो ऐसे ही खुले मे सो रहे थे, मैं सोच रहा था कि कहीं कोइ बी.एम.डब्ल्यु टल्ली होकर आया तो गये ये लोग काम से ।
कुछ देर पहले मेरे छोटे भाई का भी फोन आ चुका था । उसे मेरे नेक कदम की जानकारी मिल चुकी थी । मुझपे झल्लाते हुए उसने फोन रख दिया और माँ-बाबु जी को मेरे नेक कदम की सूचना दे दी । बाबु जी परेशान, उनका फोन आया और साथ में ढेर सारी नसीहतें । उन्हें समझा-बुझा कर मैने फोन रख दिया और आगे की ओर मार्च किया ।
मुझे लगा कि यार मैं ठंड मे बाहर हुं तो दिल्ली से लेकर बेगुसराई(बिहार) तक लोग परेशान हो गये हैं । और एक ये लोग हैं दिल्ली तो क्या इनका नगर-निगम भी इनके बारे में नहीं सोच रहा है ।
एम्स के पास कुछ और लोग ठिठुरते हुए रात काटते मिले । एक ही कम्बल को ओढ़ भी रखा था और बिछा भी रखा था । कुछ लोगों के साथ तो कुत्ते भी सो रहे थे, सड़क के ये आवारा कुत्ते उनलोगों के हमदर्द दिख रहे थे ।
हमे कुछ समझ में नहीं आ रहा था । हमलोग कुछ कर पाने की स्थिती में भी नहीं थे ।
अब हमलोग एम्स से आगे बढ रहे थे । जैसे-जैसे साउथ-एक्स के करीब होते जा रहे थे, दिल्ली समृद्ध दिखने लगी थी । कुछ भी लावारिस की तरह इधर-उधर नहीं, सबकुछ व्यवस्थित ।
फिर वहाँ से हमलोग मन मसोसते, सरकार को कोसते घर पहुंचे ।
अब हमलोग दोस्तों के पास से उनके पुराने कपड़े जमा कर रहे हैं । फिर किसी दिन क्रांति की देवी सर पर सवार हुई तो चल पड़ेंगे उन बेघर लोगों से मिलने ।

नोट :- इसे आप www.mediakhabar.com पर भी पढ सकते हैं ।

Wednesday, January 13, 2010

मेरे हमउम्र हैं वो बच्चे नहीं हैं

रिवाज दुनिया के सारे अच्छे नहीं है
चेहरे भोले होंगे दिल के सच्चे नहीं हैं

जब जी में आये को आ कर तोड़ दे
रिश्तों के घरौंदे मेरे कच्चे नहीं हैं

कुछ बात मुहब्बत के राज़ ही रखना
दोस्त मेरे सभी अच्छे नहीं हैं

मासूमियत गलतियों में कैसे होगी सागर
मेरे हमउम्र हैं वो बच्चे नहीं हैं

देखा-सुनी