रिवाज दुनिया के सारे अच्छे नहीं है
चेहरे भोले होंगे दिल के सच्चे नहीं हैं
जब जी में आये को आ कर तोड़ दे
रिश्तों के घरौंदे मेरे कच्चे नहीं हैं
कुछ बात मुहब्बत के राज़ ही रखना
दोस्त मेरे सभी अच्छे नहीं हैं
मासूमियत गलतियों में कैसे होगी सागर
मेरे हमउम्र हैं वो बच्चे नहीं हैं
बढिया रचना । बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteशशि दा आपकी इस रचना कों सदेह मैं ने आपके मुखारबिंद से सुनने का सौभाग्य पाया था |आज इसे आपके ब्लॉग पर पढ़ते हुए वही सुखद अनुभव प्राप्त हुआ |एक बात तो आपकी रचना में साफ़ दिखता है की आपने उनकी मासूमियत कों बयाँ करने कों जो अंदाज़ अख्तियार किया है |वो विरह की भावना की चादर ओढ़े हुए बस कुछ कहना चाहती है |
ReplyDeleteआपका अनुज
गौतम सचदेव
hmm...ye to naainsafi hai, ghaltiyan to kisi se bhi ho sakti hain....
ReplyDeletebhaut umda.....
ReplyDeletechalo in riwqazon ko tod dain
ReplyDeletein mukhoton ko cheheron se nauch le
jo sapne rulaye humko....
unko dekhna hi chhod de
bhai maan gaye aapko.
ReplyDeleteaapne gazal ki aakhri panktiyon me sach hi kaha hai...
"मासूमियत गलतियों में कैसे होगी सागर
मेरे हमउम्र हैं वो बच्चे नहीं हैं"
panktiyon ke bhitar chipe arth ko samajhne k baad main yah kahunga ki---
"Aaj ki pratispardha bhare mahol me log swayam par apna niyantran kote ja rahe hain aur yahi vajah hai ki wo bachkani harkatein karte hain"
खूबसूरत ! शब्दों के साथ भावनाओं को बड़ी खूबसूरत अंदाज़ में बाया किया है !
ReplyDeleteधन्यवाद आपको !
अंशु
jindgi ita sameye nahi deti
ReplyDeleteunko chaha hum ne voh hume nahi chahte
unke intjaar me sari jindgi nikal jaye ite kuche nahi jindgi khubsoorta hai ise yoon hi jane den hum ite bache nahin