Sunday, September 13, 2009

तुमसे मिलने को सागर क्यूँ ऐसी चाहत होती है

जब कहीं किसी चेहरे पर शराफत होती है
बर्षों से सहेजी पास उसके आदमियत होती है

वो बैठती है इस कोने मैं उस कोने में बैठता हूँ
यूँ ही मचलता नहीं मैं सब मूक इजाज़त होती है

अपनी तबियत ही ऐसी है हार मानेगी कहाँ
बारहा दिल टूटता है बारहा मुहब्बत होती है

कलेजा फटता है कैसे ये ज़रा देख लेना
बाबुल के घर से कैसे बेटी रुख्सत होती है

समझाते हैं भोले मन से कितना प्यारा लगता है
घरवालों से कभी-कभी बच्चों को शिकायत होती है

महाजन धमकता है द्वार पर माह के शुरुआत में
क्या बताऊँ यार तब कैसी फजीहत होती है

है समर्पण का भाव कैसा कि अस्तित्व भी मिटा लेते
तुमसे मिलने को सागर क्यूँ ऐसी चाहत होती है

8 comments:

  1. “ जब कोई मस्तानी सी कलम दुख्ती सी कसकों और दिखती सी आपदाओं के वीच अपने जीवन के अनन्त बैभव को अनोखे अन्होनेपन कि भाषा देता है तो अभिव्यक्ति स्वयं प्रस्फ़ुटित हो जाती है॥

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  2. वो बैठती है इस कोने मैं उस कोने में बैठता हूँ
    यूँ ही मचलता नहीं मैं सब मूक इजाज़त होती है
    sir bauth accha poem hai, kas koi man se piyar karta,तुमसे मिलने को सागर क्यूँ ऐसी चाहत होती है

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  3. "वो बैठती है इस कोने मैं उस कोने में बैठता हूँ
    यूँ ही मचलता नहीं मैं सब मूक इजाज़त होती है".....ooooo...bahut jyada pyar karte ho apne dream girl se....I mean bahut pyari line hai... "है समर्पण का भाव कैसा कि अस्तित्व भी मिटा लेते" ye to aaj k yug ki sachhai hai.....jo shayad dhundne se hi mile.......

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  4. वो बैठती है इस कोने मैं उस कोने में बैठता हूँ
    यूँ ही मचलता नहीं मैं सब मूक इजाज़त होती है

    अपनी तबियत ही ऐसी है हार मानेगी कहाँ
    बारहा दिल टूटता है बारहा मुहब्बत होती है

    waah waah...ise kehte hain romance

    कलेजा फटता है कैसे ये ज़रा देख लेना
    बाबुल के घर से कैसे बेटी रुख्सत होती है

    aur ise kehte hain dard...bahut khoob

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  5. महाजन धमकता है द्वार पर माह के शुरुआत में
    क्या बताऊँ यार तब कैसी फजीहत होती है
    शशि भाई 'सागर' तखल्लुस जैसा है वैसी ही लेखनी में गहराई भी है आपकी खुबसूरत रचनाएँ और बेहद खुबसूरत ब्लॉग के लिए तहे दिल से आपको बधाई,

    आपका हमवतन भाई गुफरान..(अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद),

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  6. "अपनी तबियत ही ऐसी है हार मानेगी कहाँ
    बारहा दिल टूटता है बारहा मुहब्बत होती है"

    kya baat hai sagar bhai...maza aa gaya...bahut pyari gazal hui hai...

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  7. wah wah.....

    kya gajab ki gazal likhi hai aapne.

    कलेजा फटता है कैसे ये ज़रा देख लेना
    बाबुल के घर से कैसे बेटी रुख्सत होती है

    kya upma di hai aapne. dil todnewale ko pata chal jayega ki dil tutne par kaisa dard hota hai.............................

    thanks for this gazal....

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