Thursday, April 1, 2010

शिक्षा और व्यवस्था का रवैया

व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास और उसकी संभावनाओं को अनंत आकाश देने के लिये शिक्षा का होना अनिवार्य है । अनिवार्य होने से यहाँ मेरा तात्पर्य है कि शिक्षा हमारा मौलिक अधिकार हो ।
कहने को तो हमारा देश दुनियां का सबसे बडा लोक्तांत्रिक देश है, परन्तु आज़ादी के साठ साल बाद भी शिक्षा हमारे मौलिक अधिकार में शामिल नहीं हो पाई है ।
किसी कस्बे, जिले या युँ कहें कि देश का विकास प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वहां के शैक्षणिक व्यवस्था पर निर्भर करती है ।
भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, एक आंकलन के मुताबिक कुल जनसंख्या का 54 प्रतिशत हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु का है । इसका मतलब यह हुआ कि और देशों की तुलना में यहाँ काम करने को ज्यादा हाथ और दिमाग हैं । परन्तु यह एक नंगा सत्य है कि इसी 54 प्रतिशत आबादी का बहुत बडा हिस्सा आज भी बुनियादी शिक्षा से भी वंचित है, जिसमें बच्चे भी शमिल हैं । आंकडा यह है कि देश की साक्षरता दर मात्र 65% है और 30 करोड कि आबादी निरक्षर है । इसी बात से अंदाजा लगया जा सकता है कि हमरा देश विकास की ओर किस गति से बढ रहा है ।
आज हमारा देश क्षेत्रवाद, जातिवाद, आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी कई समस्याओं से जूझ रहा है । इसका बस सीधा सा मतलब है कि कहीं न कहीं हमारी व्यवस्था में शिक्षा का लोप होना शुरु हुआ है । आज घर के ही लोग घर हो आग लगाने पर आमादा हुए बैठे हैं । दिनकर जी की ये पंग्ति कि “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है” इस घडी में चरितार्थ होती दिख रही है । आखिर शिक्षा ही तो हमारी सदबुद्धि, विवेक और साकारात्मक सोच की जननी है ।
और हाँ इस बात से भी किनारा नहीं किया जा सकता है कि देश की राजनीति घोर अवसरवादि हो गयी है, नहीं तो महिला आरक्षण विधेयक और शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल करने का मुद्दा अभी तक अधर में नहीं लटका रहता ।
लोकसभा में मुफ़्त एंव अनिवार्य शिक्षा विधेयक 2008 पारित किया गया । संविधान संशोधन 2002 द्वारा एक अनुच्छेद 21(अ) और संविधान मे जोड दिया गया । यह अनुच्छेद राज्य को 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा के लिये जिम्मेवार बनाता है ।
ऐसा माना जात है कि राज्यसभा जनता के हितों के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करती है परन्तु जब इस विधेयक को पारित किया जा रहा था तो सदन की उपस्थिति मात्र 54 थी । और राष्ट्रीय महत्व के इस विधेयक को तो लोकसभा में मात्र दो घंटे मे ही पारित कर दिया गया । इतने महत्वपूर्ण विधेयक पर ऐसी उदासीनता चिंतनिय ही नहीं निंदनीय भी है ।
शिक्षा मंत्री सिब्बल साहब इस विधेयक पर बोलते समय बडे ही गौरवान्वित महसूस कर रहे थे । जबकि सच्चाई है कि उन्होने कोई नया काम नहीं किया है सिर्फ जनता को मूर्ख बनाया है । बडी ही चालाकी से उन्होंने इस सच्चाई से जनता को मरहूम रखा कि सुप्रिम कोर्ट ने उन्नीकृष्णन फैसले के आधार पर पहले ही 0-14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार दे दिया है । अब आप ही बतायें कि उन्होनें नया क्या किया । हाँ Public Privet Partnership का नया जुमला जरूर सामने आया । और आता भी क्यों नहीं कॉरपोरेट घरानों से लेकर राजनीतिक घरानों तक सभी के तो स्कुल, कॉलेज और युनिवर्सिटिज के धंधे हैं ही ।
विचारणिय प्रश्न तो यह है कि उन्होनें किस आधार पर 14 वर्ष तक के बच्चों के लिये ही अनिवार्य शिक्षा की घोषणा की, जबकि इसी देश में एक साधरण नौकरी के लिये भी अनिवार्य आहर्ता 12वीं पास की ही होती है ।
1990 में “सभी के लिये शिक्षा” के वैश्विक सम्मेलन में बुनियादी शिक्षा प्रदान करने की प्रतिबद्धता अपनाई गयी थी परन्तु इतने सालों के बाद भी भारत ही नहीं कई देश इस लक्ष्य से पीछे चल रहे हैं ।
शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल करना जरूरी ही नहीं नितांत आवश्यक है । प्रारंभिक शिक्षा को अनिवार्य तथा तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा को सर्व सुलभ बनाने की जरूरत है ।
यह कटु सत्य है कि शिक्षा के प्रति ऐसी उदासीनता सही नहीं है । यही हाल रहा तो देश की गुण्वत्ता का ह्राष होगा ही यह अपनी समस्या में और भी उलझता चला जायेगा ।
तस्वीर: अनुप मिश्रा

13 comments:

  1. Hोजन , वस्‍त्र और आवास की व्‍यवस्‍था तो प्रत्‍येक व्‍यक्ति कमी या बेशी के साथ कर ही लेता है .. उन्‍हें चिकित्‍सीय सुविधा और शिक्षा देना सरकार का लक्ष्‍य होना चाहिए !!

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  2. बड़ी चतुराई से श्रेय लेने की कोशिश भर की है सिब्बल साहब ने....!फिर भी अगर गंभीरता पूर्वक लागू किया गया तो देर से ही सही एक अच्छा कदम होगा...

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  3. kaafi prabhavit kiya aapke lekh ne, esi tareh samaj ki mulbhut samasyaon se hame parichit karate rahe. ye haqiqat hai ki bagaer sikhsha ke bharat kabhi bhi sahi maine me samriddh nahi ho sakta. es mulbhut adhikar se koi vanchit na reh jaye esliye hame apni apni taraf se aawaz to uthani hi chahiye, apne kartwaye ke prati imandaar reh kar hame kaoeeo ka haq unhe dila sakte hain. bahaut khub, shashi babu

    saadhuwaad!

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  4. सिर्फ शिक्षा उपलब्ध कराना ही ज़रूरी नहीं है वरन उच्च गुणवत्ता की शिक्षा और उससे प्राप्त होने वाली सुविधाओं तक हर किसी की पहुँच को सुनिश्चित करना भी आवश्यक है...नहीं तो हमारे यहाँ पढ़े-लिखे इतने बेरोज़गार हैं कि उन्हें देखकर उनके आसपास के लोग शिक्षा को ही महत्व देना बन्द कर देते हैं...आम लोगों को शिक्षा के प्रति आकर्षित करना अभी हमारा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा होना चाहिए, वरना उस मौलिक अधिकार का क्या फायदा जिसे आम जनता स्वयं ही इस्तेमाल में लाना अनावश्यक समझे..

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  5. jo bhi kaha sach kaha..
    zimmedaari yahan khatam nahi hoti ki govt schools mein bachhon ke enrollment ki taadad badhe...waqai kaam karne ki zarurat hai na ki sirf files bharne ki...

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  6. सिर्फ़ शिक्षा के अधिकार से क्या होगा.. वो भे १४ साल की उमर तक.. उसके बाद.. वही पलायन.. यहां से वहां... वहां से यहां!!

    पहले तो सरकर यही पूरा कर के दिखाये... बाक़ी बात तो बाद में आती है!!

    अच्छा लगा पढ़ना..

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  7. भारत की शिक्षा व्यवस्था कागजी तौर पर जितनी मजबूत है काश उतनी ही मजबूती इसके क्रियान्वयन करने में दिया जता तो शायद इस देश की ये दशा नहीं होती |हमें आज़ाद हुए ६३ साल से ज्यादे हो चुके है लेकिन हम सिर्फ पहल और विधायक पास करने में ही मशगूल है |आखिर कल के भविष्य को अन्धकार में कब तक रखा जाएगा यही तो देखना है आम आदमी को |
    आपका अनुज
    गौतम सचदेव

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  8. Sagar Bhai,
    sadhuwad aapko, bahut sahi vishay chuna aapne, aajaadi ke 7 dashak baad hamari sarkar janta ko uska ek mool bhoot adikar de kar gauranvit ho rahi hai...ajeeb vidambana hai..

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  9. सागर साहब,
    आपके इस लेख को लास्ट संडे के अगामी अंक में इस्तेमाल किया जाएगा.

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  10. sagar ji,
    aapke lekh se shiksha ke prati samaj aur sarkaar dono kee apratibaddhata dikhti hai. yun sarkaar ne kitni yojnaayen banaai par sabhi vifal ho jati hai. kahin na kahin doshi hum sab bhi hain. jabtak jaagriti na ho niyam kanoon sab dhare rah jate hain, aur aisa jaan bujhkar bhi kiya jata hai taaki ashikshit ko jis disha mein chaaho ghaseet do, ya fir ek aviveksheel manaw bana kar naksalwaad ya aatankwaad ya danga fasad karwa lo.
    buniyaadi shikhsha ki baat karen to pure desh mein saman shiksha pranaali ho, fir kisi aarakshan ka kya auchitya? saman awsar aur warg ke aadhar par aarakshan bas yahi ek upay hai shiksha ya samaj mein kraantikaari pariwartan ka.
    achha likha hai aapne, shubhkaamnayen.

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  11. hi sagar bhai aap ka laikh pera bahut perbhavit hui such aap ki laikhni ka koi sani nahinsuch hi hai agar jeh baat lago ho jaye to desh ke bache apne adhikaron se vakif ho jayenge or jindgi kiya hoti hai jeh bhi samjhenge vese humare neta log kerte kuchh nahin bus apna naam uncha ho chahe jese bhi jehi unki koshish hoti hai vidhiya dhun se koi bera dhun nahinbaki sub cheejen chori hosakti hain kintu vidiya koi nahin chura sakta agar hum shikshit hain to jindgi ki her museebat ko jhail sakte hain apne peron pe khura hoke

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  12. shiksha ke prati udassinta toh abhi bhi bani rahegi,jab HRD minister hi TELECOM bhi sambhalega toh yuvaon ka career bhi missed call ho jayega

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