Sunday, March 25, 2012

नीतीश हैं अखबारों के अघोषित संपादक


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर मीडिया को नाथने और साधने का आरोप लगता रहा है. अभी दो-चार दिन पहले और पूर्व में ऐसी कई घटनायें और वाकये भी हुए हैं जो इस आरोप को पुष्ट करते हैं.

वर्षों से जदयू के कोषाध्यक्ष रहे बिनय कुमार सिन्हा के घर आयकर विभाग का छापा. बिनय कुमार सिन्हा 1994 से जदयू के कोषाध्यक्ष हैं, आयकर विभाग ने घर सहित इनके कई ठिकानों पर छापेमारी की, जिसमें आयकर विभाग को बोरे में बंद साढे़ चार करोड़ रूपये मिले. जानकार बताते हैं कि श्री सिन्हा नीतीश के सबसे करीबी व्यक्ति हैं और मुख्यमंत्री बनने से पहले तक इन्हीं के मकान में किराये पर रहा करते थे. एक अणे मार्ग में शिफ्ट करने से पहले तक मुख्यमंत्री का कारकेड बिनय कुमार के घर ही जाया करता था. लेकिन इतने महत्वपूर्ण खबर को अधिकांश अखबारों ने जगह ही नहीं दी. सूबे के एक प्रतिष्ठित अखबार ने इसे लगाया तो सही लेकिन उस अखबार ने ये बताना जरूरी नहीं समझा कि बिनय कुमार जदयू के कोषाध्यक्ष हैं.

थोड़े दिन पहले का मामला है. जनता दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम के दौरान जब नीतीश कुमार प्रेस को संबोधित कर रहे थे, तो एक युवा पत्रकार ने पूछा था कि सर क्या बात है लोगों में नाराजगी बढ रही है, वे सड़कों पर उतरने लगे हैं’. इतना सुनते ही मुख्यमंत्री भड़क गये और उस पत्रकार की वहां काफी फजीहत भी हुई. इसी तरह की एक घटना सुबे के बेगुसराय जिले की है. उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को एक कार्यक्रम में शिरकत करने अपने समय से काफी लेट पहुंचे. कुछ पत्रकार उनका इंतजार करते-करते चले गये. यह जानने पर कि पत्रकार चले गये उप-मुख्यमंत्री ने कहा कि नौकरी करनी है तो हमारा इंतजार तो करना पड़ेगा.

मीडिया पर लगे अघोषित प्रतिबंध की चर्चा तो सुबे में दबे जुबान होती ही रहती थी. लेकिन इसे और बल मिला पिछले दिनों प्रेस कॉंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष न्यायमुर्ती काटजू के दिये बयानो से. न्यायमुर्ती काटजू पिछले दिनों बिहार में थे. पटना विश्वविधालय के द्वारा एक व्याख्यान का आयोजन किया गया था. आयोजन के दौरान प्रेस कॉंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के अवकाश प्राप्त न्यायधीश मार्कंडे काटजू ने बिहार सरकार को कबीर दास के दोहे निंदक नियरे राखिये की याद दिलाई. और प्रेस स्वतंत्रता के मामले में लालू के शासन काल को नीतीश के शासन काल से बेहतर बताया. न्यायमूर्ति काटजू ने कहा कि नीतीश के शासन में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिती तो अच्छी है लेकिन मौजूदा सरकार में फ्रीडम ऑफ प्रेस नहीं है, जबकि लालू के समय में थी. उनके इतना कहने पर पटना कॉलेज के प्रिंसिपल लालकेश्वर प्रसाद आग-बबूला हो गये और मंच के नीचे से ही चिल्लाने लगे. यह जानना यहां आवश्यक है कि लालकेश्वर प्रसाद की पत्नी जदयू कोटे से विधायक हैं. और न्यायमूर्ती के खिलाफ सूबे के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और शिवानंद तिवारी जिस तरह अपनी खीझ निकाल रहे थे उसे बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका अपमानजनक मानता है. लेकिन नीतीश इस मुद्दे पर अब तक मौन ही साधे हुए हैं.

ऐसी कई घटनाऎं हैं, जिसे सत्ता के दबाव में अखबारों ने उचित कवरेज नहीं दिया. या बड़े जन समुदाय को प्रभावित करने वाली खबरों, राज्य स्तरीय खबरों को अंदर के पन्नों पे बिना पर्याप्त कवरेज के प्रकाशित की गई. एक ऐसा ही मामला है जिसे जो आज तक मुख्यधारा की मीडिया की खबर नहीं बनी.

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का पटना के आर्यकुमार रोड (मछुआटोली) स्थित मकान का कुछ भाग बिहार के उप-मुख्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री सुशील कुमार मोदी के नजदीकी रिश्तेदार श्री महेश मोदी ने “जबरन कब्ज़ा कर रखा है और उसमें दुकान चला रहे हैं.

राष्ट्रकवि की अस्सी-वर्षीया पुत्र-वधू हेमंत देवी के मुताबिक, “मकान के एक भाग में स्थित दुकान को सुशील कुमार मोदी के चचेरे भाई श्री महेश मोदी ने मासिक किराए पर लिया था। वर्षों बीतने के पश्चात जब खाली करने की बात आई तो वे यह कह कर धमकाने लगे कि उनके भाई बिहार के उप-मुख्य मंत्री हैं. इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि दिनकर के पोते श्री अरविंद कुमार सिंह अपनी समस्या से लिखित रूप से प्रधानमंत्री तक को अवगत करा चुके हैं. उन्होंने इस संबंध में सूबे के मुखिया नीतीश कुमार से भी मुलाकात की. लेकिन न्याय के साथ विकास का दावा करने वाले मुख्यमंत्री दिनकर के परिजनों को अब तक न्याय नहीं दिला सके हैं. इकरारनामे के अनुसार, पिछले ३० अप्रैल २०११ को खाली कर देनी थी.

यह अकेली घटना नहीं है जिसे सत्ता पक्ष के दबाव में उचित कवरेज नहीं मिला. अभी हाल ही में सूबे के मंत्री प्रेम कुमार के साले ने गया जिले में जीआरपी के एक आरक्षी के उपर गोली चला दी. मामला यह था कि मंत्री का साला बबलू आरक्षी किशोरी रजक की पत्नी के साथ बहुत दिनों से छेड़-छाड़ कर रहा था. पटना में पदस्थापित आरक्षी जब अपने घर गया तो उसे इसकी जानकारी मिली, और उसने इसका विरोध किया. विरोध का अंजाम यह हुआ कि उस पर गोली चली और बबलू के गुर्गों ने उसके साथ मारपीट भी की. सत्ता का दबदबा कितना है यह इस बात से ही जाहिर होता है कि जब इस संदर्भ में गया के सीनियर एस.पी से बात की गई तो उन्होंने साफ कहा कि हम इस केस के बारे में जानते ही नहीं है, हमारे पास बहुत सारे केस हैं. यह ज्वलंत मामला भी राज्यस्तर की खबर नहीं बन पाई.

बिहार में मीडिया की स्वतंत्रता बाधित की जा रही है या नहीं इसका प्रमाण पिछले दिनों हुए आयोजन से लगाया जा सकता है. पटना के बरिष्ठ पत्रकारों के द्वारा बिहार में पत्रकारिता: विश्वसनीयता का संकट विषय पर एक गोष्ठी गांधी संग्रहालय में की गई. वहां मौजूद सारे पत्रकार यह मान रहे थे कि मौजूदा सरकार मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी है, वजह मोटी रकम के रूप में दिया जाने वाला विज्ञापन हो या कुछ और. गोष्ठी के दौरान बरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने कहा कि राज्य में पत्रकारिता को संरक्षित रखने के लिये पूरे पत्रकार जमात को प्रेस बिल वाली एकजुटता का परिचय देना होगा.

जदयू के निलंबित राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने मारकंडेय काटजू के बयान को बिहार में प्रेस पर अंकुश के आरोपों की पुष्टि बताया है. उन्होंने कहा कि बिहार में सरकार क्या कर रही है, यह प्रेस काउंसिल ने स्पष्ट कर दिया है. वहीं नंदीग्राम डायरी के लेखक और जनांदोलनों के पत्रकार पुष्पराज कहते हैं, बिहार के सारे अखबार सत्तापरस्त हो गये हैं. और स्टेट के स्पोक्स पर्सन की भुमिका निभाने में लगे हुए हैं. और जिस तरह से न्यायमूर्ती काटजू बोलने से रोकने की कोशिश की गई, वह न्यायमूर्ती काटजू का अपमान तो है ही, बिहार के लिये भी शर्मनाक है’.

फिलहाल प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने तीन सदस्यीय टीम(राजीव रंजन नाग, अरुण कुमार और कल्याण बरुआ) का गठन कर दिया जो बिहार आकर इस बात की जांच करेगी.

बताते चलें कि फारविसगंज-भजनपुर गोलीकांड के बाद अखबारों की भुमिका से नाराज बिहार मीडिया वॉच ने 05/07/11 को ही प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि पटना से प्रकाशित प्रमुख हिंदी अखबारों की जनविरोधी और सत्तापरस्त भूमिका की जांच हो।

कार्टून: पवन

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