बचपन की शरारतें
अल्हड़पन और नटखाटें|
देखकर मुस्कुराती थी,
कभी-कभी प्यारी चपत,
भी लगाती थी माँ |
वक़्त के साथ-साथ ,
हम बदले हैं कितने,
और हमारी शरारतें भी|
कभी खेलते थे गलियों में,
अब भावनाओं से खेलते हैं|
अब हम कांच नहीं,
दिल तोड़ने लगे हैं|
बदली तो है माँ भी,
अब प्यार भरी चपत नहीं लगाती|
बस घुटती है अपने ही अन्दर,
माँ के अंतर्द्वन्द को बखूबी व्यक्त किया है.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब, क्या कहें, बहुत सुन्दर
ReplyDelete---
क्या आप थकी-थकी इंटरनेट स्पीड से परेशान हैं?
m verma n vinay ji...
ReplyDeletesneh aur protsahan k liye bahut-bahut shukriya
सच ही कहा,बचपन का भोलापन कैसे बदल गया,अति सुन्दर
ReplyDeletePahle bhi padh chuke the.....but once again, ye line kafi achchha hai:
ReplyDeleteAb hum kaanch nahi, dil todne lage hain.....
swapnil bhaiya..
ReplyDeletesneh aur protsahan k liye bahut-bahut dhanyawad
vinay ji
ReplyDeletesneh aur protsahan k liye shukriya
अब प्यार भरी चपत नहीं लगाती|
ReplyDeleteबस घुटती है अपने ही अन्दर,
yahi to hota hai jab bache bade ho jate hai ye baat alag hai maa ke liye wo hamesha ek se rahte hai magar unke liye maa kuch badal jati hai unko maa ka kuch kahna apni privacy me hastjhep karna lagta hai tab..hai na