Wednesday, August 12, 2009

हम बदले हैं कितने

बचपन की शरारतें
अल्हड़पन और नटखाटें|
देखकर मुस्कुराती थी,
कभी-कभी प्यारी चपत,
भी लगाती थी माँ |
वक़्त के साथ-साथ ,
हम बदले हैं कितने,
और हमारी शरारतें भी|
कभी खेलते थे गलियों में,
अब भावनाओं से खेलते हैं|
अब हम कांच नहीं,
दिल तोड़ने लगे हैं|
बदली तो है माँ भी,
अब प्यार भरी चपत नहीं लगाती|
बस घुटती है अपने ही अन्दर,

8 comments:

  1. माँ के अंतर्द्वन्द को बखूबी व्यक्त किया है.

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  2. m verma n vinay ji...
    sneh aur protsahan k liye bahut-bahut shukriya

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  3. सच ही कहा,बचपन का भोलापन कैसे बदल गया,अति सुन्दर

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  4. Pahle bhi padh chuke the.....but once again, ye line kafi achchha hai:
    Ab hum kaanch nahi, dil todne lage hain.....

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  5. swapnil bhaiya..
    sneh aur protsahan k liye bahut-bahut dhanyawad

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  6. vinay ji
    sneh aur protsahan k liye shukriya

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  7. अब प्यार भरी चपत नहीं लगाती|
    बस घुटती है अपने ही अन्दर,

    yahi to hota hai jab bache bade ho jate hai ye baat alag hai maa ke liye wo hamesha ek se rahte hai magar unke liye maa kuch badal jati hai unko maa ka kuch kahna apni privacy me hastjhep karna lagta hai tab..hai na

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