बाद मसरूफियत के जो प्यार बच पायेगा
दंगे धमाके से वो भी कुचला जायेगा
गर इसी तरह नफरत के बीज बोए जायेंगे
मैं गुलाल किसे लगाऊंगा तू गले किसे लगायेगा
कुछ सेवैयाँ खरीद लाया हूँ बाजार से
पर उसमें इदी का प्यार कैसे आएगा
उसे फिक्र है बदनाम हो न जाऊँ कहीं मैं
वो मुसलमान है पता नहीं कब पकड़ा जायेगा
सरियत की बातें करता है आस्था की दुहाई देता है
बता सागर ऐसे में मुहब्बत कौन निभाएगा
:- द्वैमासिक पत्रिका "परिंदे" के अगस्त-सितम्बर 09 अंक में प्रकाशित |
सरियत की बातें करता है आस्था की दुहाई देता है
ReplyDeleteबता सागर ऐसे में मुहब्बत कौन निभाएगा
bahut hi waajib prasan hai ............ek sundar banawat our bunaawat ki rachana......badhaaee
गर इसी तरह नफरत के बीज बोए जायेंगे
ReplyDeleteमैं गुलाल किसे लगाऊंगा तू गले किसे लगायेगा
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
gar isi tarah....kafi sanzeeda hai..wakai behtareen...
ReplyDeleteprakashit hone ki bahut badhai...
kalam ki jai ho!!!
उसे फिक्र है बदनाम हो न जाऊँ कहीं मैं
ReplyDeleteवो मुसलमान है पता नहीं कब पकड़ा जायेगा
sahee masla chhed baithe hain aap...
kaash ye kavita hamare majhab-parast bhaai ko aur prashaasan ko kuchh seekh de paaye...
bahut khoob
bahut khoob shashi...behad khoobsoorat
ReplyDeleteजब कोई मस्तानी सी कलम दुखती सी कसकों और दिखती सी आपदाओं के बीच अपने जीवन के अनंत बैभव को अनोखे अन्होनेपन की भाषा देता है तो अभिव्यक्ति स्वयं प्रस्फुटित हो जाती है meri taraf se apki is rachna ke liye bus itna hi
ReplyDeletelage raho dude............
ReplyDelete"गर इसी तरह नफरत के बीज बोए जायेंगे
मैं गुलाल किसे लगाऊंगा तू गले किसे लगायेगा"........
Pyar sametne ka achha tarika hai
वो रह जाएगा हिन्दू वो रह जाएगा मुसलमाँ
ReplyDeleteतो इस दुनिया में इंसाँ कौन कहलाएगा
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काश के हम सब इस दुनिया में रहते ही गले लगाने की कीमत जान पाते...काश के हम जान पाते कि इस दुनिया से चल देने के बाद लाख कोशिशों पर भी किसी को लगाने के लिए हमारे हाथों में गुलाल नहीं आ पाएँगे..
koi aansu bahata hai,koi ghut kar rah jata hai,
ReplyDeleteek kavi hi hai jo peeda ko alfazon se sajata hai....!