Friday, August 28, 2009
अंतरकलह और भाजपा
भाजपा और विवाद में चोली-दामन का सम्बन्ध है | यह इसकी जन्मजात समस्या है जो इसके साथ बनी रहेगी | अगर भारत की राजनैतिक पार्टियों पर नज़र डालें तो यही पता चलता है कि राजनैतिक पार्टियां पहले अस्तित्व में आतीं हैं फिर ये अपने संगठनों का निर्माण करती हैं | परन्तु भाजपा के सन्दर्भ में उल्टा है | संघ ने अपने राजनैतिक सरोकारों को पूरा करने के लिए भारतीय जनता पार्टी का गठन किया |
भारतीय जनता पार्टी संघ की इतनी ऋणी है कि यह कभी भी स्वतंत्र रूप से साँस ही नहीं ले पायी है | पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपयी यदा-कदा अपने स्वतंत्र तेवर दिखाने के प्रयास जरूर किये परन्तु उन्हें भी अंततः संघम शरणम् होना ही पडा |
भाजपा बड़ी ही इमानदारी से इस बात को स्वीकार करता है कि तीन सांसदों (१९५२) से शुरू होने वाली इस पार्टी के पास अगर ११६ (२००९) हैं तो वो संघ के बदौलत ही | परन्तु इतनी ही इमानदारी से इसे यह भी स्वीकार करना होगा कि अब भारतीय जनता को हिन्दुत्व की परिभाषा और विचारधारा स्वीकार्य नहीं है |
भाजपा का कोई न कोई बड़ा नेता अक्सर और बेवजह इस बात का उद्घोष करता रहता है कि संघ ही उसका प्रमुख है और संघ की विचारधारा ही उसकी विचारधारा है | और दूसरी ही साँस में यह भी कहता नज़र आता है कि हिंदुत्व की अवधारणा को इक्कीसवीं सदी के अनुसार व्याख्यायित किया जाय | इस उद्घोष के साथ भाजपा का आत्मसंशय और अपराधबोध साफ़ झलकता है |
अगर हाल के मुद्दों पर गौर करें तो इतना ही प्रतीत होता है कि इसका हर निर्णय बौखला और बौरा कर लिया गया है | भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की निर्णय क्षमता में ही दोष है, और इस बात से किनारा नहीं किया जा सकता है |
उत्तराखंड में भुवनचंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाना कहाँ तक जायज था, जबकी राजनीति में उन्हें आये दो दशक भी नहीं हुए हैं | | और फिर हार की जिम्मेदारी उनपर थोपते हुए निशंक को मुख्यमंत्री बना दिया जाना, सब केन्द्रीय नेतृत्व की इच्छा के अनुरूप | अगर वहां के कार्यकर्ता और आम जनता के नब्ज टटोली जाय तो आज भी भगत सिंह कोशयारी वहां के सबसे स्वीकार्य नेता हैं |
बसुन्धरा को बिपक्ष के नेता पद से हटाने की कवायद, यह जानते हुए कि विधायकों का एक बड़ा कुनबा उनके साथ है, हास्यास्पद निर्णय ही लगता है |
अगर हार की जिम्मेवारी लेने और थोपने का इतना ही शौक है, तो शीर्ष नेतृत्व पार्टी की कमान नए चेहरों को क्यूँ नहीं सौंप रही है |
जसवंत सिंह जैसे बरिष्ठ नेता का निकाला जाना, इसी बात को इंगित करता है कि फिलहाल भाजपा मानसिक रूप से अस्वस्थ चल रही है |
लगभग सात सौ पन्नो की उनकी किताब को किसी ने ढंग से पढा भी नहीं होगा और उन्हें निष्कासित कर दिया गया | जसवंत सिंह को इस तरह से दुत्कारा गया कि पार्टी में एक के बाद एक बड़े नेता बगावती बिगुल फूँक रहे हैं |
जसवंत सिंह ने ऐसा कुछ नहीं कहा जो कि पहले जिन्ना के बारे में न कहा गया हो | सालों पहले डा० अजीत जावेद द्बारा लिखित पुस्तक "जिन्ना की त्रासदी" में इन सब बातों का उल्लेख है | आखिर सच को स्वीकारने में भाजपा को इतनी परेशानी क्यूँ हो रही है |
पहले तो भाजपा खुद तय करे की उसकी विचारधारा क्या है | इस बात को लेकर आम जनता ही नहीं पार्टी के नेताओं में भी संसय बना हुआ है |
पद की लोलुपता को छोड़ कर शीर्ष नेता अब कांग्रेस का विकल्प बनने की सोचे | और यह तभी संभव है जब भाजपा में संघी और गैर संघी के बीच की खाई को पाटा जाय |
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अनायास
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अच्छा लेख लिखा है आपने... जारी रहें... यह मुद्दा कुछ ज्यादा ही उछल रहा है अब..
ReplyDeleteCongress ko kyu duba diya.....jst joke...ye baat to sahi hai hamesha se bhajpa naye naye tips apnati rahti hai lekin yah bhi sach hai ki hamesha use jaisaki aapne likha hai"antatah sangham shradam hona hi padata hai.......
ReplyDeleteदेश के सशक्त और राष्टवादी राजनितिक दल का अपने बखूबी अच्छा चरित्र चित्रण किया है वाकई क्या आज पार्टी की स्थिति इतनी ख़राब हो गयी है की पार्टी के अस्तित्व को खंगालने की बात ho रही है ......................बहुत आचा मुद्दा है आपका .............
ReplyDeletesach hai..desh ka doosra sabse bada raajnaitik sangathan aaj khud netritva aur sangathanatmak andhere se joojh raha hai..iske parinam na keval bhajpa balki desh ki loktantratmak pranali ko bhi prabhawit kar sakte hain..vipakaskha k kamjor hone se sansad mein waicharik nirwat ki sthiti ban sakti hai...
ReplyDeletemudde ko kaphi achhe dhang se rakha hai aane..alag rajyon maein bhajpa ki sthiti ko bahut achha darshaya hai..jari rakhein
achcha lekh likha hai apane
ReplyDeleteBHAJPA AUR ANTARKALAH
ReplyDeletebhai kisi bhi loktantric party me antarkalah hona smabhawi hai agar cong bhi cunaw har jati to ye usme bhi dikhne ko mil jata .apki bat sahi hai ki bhajpa par sangh ka prabhaw hai ,leking ye bhi sahi hai ki pach sal tak esi bhajpa ne NDA ki chatari me gair sangh wale dalo ko lekar chali thi kya yah uski uplabdhi nahi thi.bhajpa ko 110 loksabha chetro me muslamo ka bhot esliye nahi kyuki wo sangh samarthit hai esliye mai ye nahi manta ki sangh ke karan hi bhaypa hai.utarakhand ki jaha tak bat hai sahi hai kanduri ko rajntik anubhaw kam hai leking waha party ne unke hi nam par chunaw lara tha aur janata ne use jitaya anubhaw ki bat hai to kuch partiyo me to log sirf pariwar ke nam par mahasachiw ban jate hai .....khair choriye jaha tak jasawant sigh ki bat hai wichrdhara se kabhi samjauta nahi hota wo adwani to party adhyaksh pad chorane ki bat ho ya mr singh ko nikalne ki bat,,,, jinna ki jaha tak bat hai ye to aitihasi tathy hai ki pahle muslim ligue ne hi pakistan ki mang ki thi aur pura nahi hone par "sidhi karwae" ki bhi bat kahi thi begal,up aur bihar me es karan dage bhi hue the ensabke liye jinna jimedar nahi tha to aur kaun tha?????????????jaha tak wichardhara ka sawal hai party me aur karykartao me na kabhi sansay tha aur na hi hai "sampurn manwata" wichrdhara hai... thi....aur rahegi ANUP
SHASHI BHAI APNE UPAR BADIYA KATUN LAGAYA HAI....JO BHI KAMAL KE PAS PHATAKEGA DUB JAYEGA AUR KAMAL JAISA KHILA HUA HAI WAISA HI RAHEGA...SO PLEASE KEEP DISTANCE
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ReplyDeleteaise hi likhte rahen..1 din aap bahut nam karenge..hame aapse bahut ummid h bhai
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