Sunday, August 16, 2009

बस क्या था, माँ गुस्सा हो गयी

मैंने कहा, मुहब्बत हो गयी
बस क्या था, माँ गुस्सा हो गयी

समझाऊं आखिर कैसे उन्हें
जाने किन ख्यालों में खो गयी

भविष्य के पन्नो को देखते पढ़ते
रात फिर से किसी संशय में सो गयी

स्नेह उनका उन्हें मना ही लिया
थोडा डाँटी, फिर मेरे ही संग हो गयी

गोद में गलतियाँ था सुना रहा मैं
और वो ममता का सागर हो गयी

7 comments:

  1. Prem aur Sagar shayad ye apke behad pasandida words hai bt yaar so innocent poetry........well mujhe tarif karni nahi aati bt mom hoti hi aisi hai jaisa ki apne apni poem main unhe ubhara hai.......jst like prem ka sagar

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  2. wakai maa ka dil kuch aisa hi hota hai apki rachna bilkul vastavikta ka marm liye hoti hai mere bhai isse jyade kya kahoon main apke liye

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  3. apki kavita achi hai mera manna hai ki akhiri line yun honi chaiy thi गोद में leta गलतियाँ था सुना रहा मैं
    और वो ममता का सागर हो गयी .maaki muskaan ne mere mann me umad rahe sagar ko kiya shant aur khud mere dukh ko apne anchal me chupa gayi......

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  4. vah..vah...
    so simple & meaningful

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  5. तेरी "माँ" पर लिखी गयी सारी कविताएँ मुझे बहुत ही अच्छी लगी और मेरे हृदय को छू गयी हैं । माँ होती भी कुछ एसी है.... प्रेम का दूसरा रुप ... माँ में ममता होती है, माँ में स्नेह होता है.... जो किसी में नही होता.... । बहुत अच्छा तुझसे यही उम्मीद थी.... well done

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  6. गोद में गलतियाँ था सुना रहा मैं
    और वो ममता का सागर हो गयी

    m ahoti hi hai aisi..uske samne sab kuch bekar hai uska pyar sacha sagar hai

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  7. heart touching lines. i like this.
    "Mother: that was the bank where we deposited all our hurts and worries"

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